________________ महानिशीथसूत्रः अध्ययन बरणं खत्ताणं तित्थयरेइ वा गणहर वा भवेता. 4 सिज्जा ॥सू०३३॥ से भयवं? के अठणं एवं उच्च-जहाणं चाउक्कालियं सज्झायंकायब्वं. गोथमा ! 'मणवयणकायगुत्तो नाणावरणं खवेइ भएसमयं / सज्झाए नहतो पणे वयो जाइ रग्गं 13001 उड्ढमहे तिरियंमि थ जोइसवेमाणिथा य सिद्धी या सव्वो लोगालोगो स-यायवि. उस्स परचकत्वं / / 109 // दवालसविहंमिवितवे सब्भितरवाहिर लसलाद। गवि अस्थि वि य होही सज्झायन्सम तोकम्मं / / 110 // स एगतिमासक्स्चमणं संवरघरमविय भणासि. ओ होज्जा / सम्झायमाणरहिमी एगोवासलंपि ण लभेज्जा // 11 // उगमउयायणएसणाहिं सुद्धं तु निच्छ मुंअंतो। जन तिविहेगा उत्तो अगुममय भवेज्ज सज्साए // 12 // ता तं गोयमा एगगमाणसत्तं ण उरमित सक्का / संवरधर रखवणेगविजे-- ण तहिणिज्जराणंता // 43 // पंचसमिभो तिगुत्तो खती तो थनिज्जरापही। एगग्गमाणसो जो करज्ज सन्साय सी) मुणीभत्ते(धन्नो)(सुणि भंतो) // 114 // जो बारे पसत्यं सुयनाणं जो सुणेर सुहभावो / उझ्यासवदारतं तरकालं गोथमा होण्हं // 11 // एगंधि जो दुल्तं सत्तं पूडियोहि ठवइ मगे। ससुरासुरंमिविजगे तेणेह धोसिओ अमाधाओ६ धाउपहायो कचणभावं न य गरधई कियाहीणो / एवंसव्योवि जिणोवएसहीणो न बुझज्जा / / 11 / / गयरागदीसमोहा धम्मकरंजे कति समयन्नू।। अणुस्थित्मवीसंता सावध्यावाण सुरचति // 4 // "$$$$$$$$ $$$ $