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________________ 922222222 Hariranji in . 35 अवेश्यजीवाइपयत्यस माना गोयंमा! नो गं उत्त. मत्ते अभिनंदणिज्जे पसंसणिज्जे वा भवइ.जमओये अणंतरभरिए दिन्तोशलिए सिए पत्थेजा / अन्नं कथाहरी तितिविधियादी संचिक्षिया तओ णं बंभ-वया ग परिभसिज्जा, णियाकडे वा हवेज्जा २॥सू०१४॥ जे य aaN से विमसिमे से नारिसमज्सवमायमंगीविच्याणं विरयाविरए दहा-वे॥ सू.१९॥ तहा यां जे से अहमे नहा जेणं से महमाहमे तेमिं तु एगतेणं जहा इत्यीसुं तहा नेए जाव णं कम्महिंदयं समजेजा, परं पुरिसरसागं सं. चिकमार्गसुं नहोवरितलपक्वएडं लिंगे यम. हिथया रागमुपज्जे, पूर्व एते चैव पुरिसदिमागे // सू०२०॥ कातिंच इत्थी गोयमा! भवत्तं सम्मतदत्तं च अंगीकाऊणं जावणं सन्नुत्तमे पुरिंसविभाः गे ताव चितणिजे, नो ण सन्वेसिमित्यीयं / / / स०१॥ एवं तु गोयमा / जी इत्थीए तिकाले पुरि.. ससजोगसंपत्तीण संजाया अहा ए पुरिससंजोगसंपत्तीवि साहोणार जावो तेरसमे चोहसमे पन्द्रर समेच समए पुसिया सरिया संजुत्तः यो नियमसमायरिय से जहा घमकतणवारसमिटे कर मामक वा नगरे नः इव सपालले चंडादित लसंधुक्मिए पयलितया टिझर किंग उक. समेज्जा एव तु सोचमा से इ-मामी सपाल. ता समापी लिडाझिय र समयस मा ।।एहाविसहमे बावीर इसे जावणं तटीसमे समए ' जहा पहीसिहा वावन्ना पुरवि सयवातहा. विहेण चुन्नजोगेण ना पचलेजा. सा इत्थी पुरिस. दिसणे वा पुरिसालावगकस्सिोया का मंहे . ssssssssss
SR No.004371
Book TitleAgam Sudha Sindhu Part 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendravijay Gani
PublisherHarshpushpamrut Jain Granthmala
Publication Year1975
Total Pages210
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_mahanishith
File Size23 MB
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