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________________ मी महानिकायसूत्र : धरन / 203 भेजा न समारंभेजा जावज्जीमाएति,से गं जयाए भने से णं अयणाय धुवे से गं जयणाए व दक्खे से णं जयणाए बियाणएत्ति, गोयमा। सुसदस्य उम हती संकहा परमविम्हथजणणी य॥सू०२२॥ चूलिया पठमा एगंतनिजर / / 01 अ०१॥ ॥अथ द्वितीयचूलात्मकं अष्टममध्ययनम्॥ से भावं। केणं अटेगों एवं धइ ? तेणं कालेणं तेणं समरणं सुसहनामजे अणगारेट भूयः वं, तेण च एगेस्स पक्वरसंतो पभूयाणियाओ आलोधणाओ निदिन्नाओ सुमहंताई च अच्चंतपोरसु. टुक्कराइं पायरिसाई समाचिन्नाइंतहावि तणं वर एयां विसोहियर्थ न समुवलडंति, एतेणं अठेणं एवं वुच्या 11 से भयवं! केरिसा उण तस्स सुसदस्स वत्तव्यथा ? गोथमा' अस्थि इह चेर भारहे वासे अवंती णाम ज़णवओ, तत्थ य संवुमके नाम खेडगे,तम्मि य जम्मदरिद निम्मेरे निक्किवे किविणे गिराणुकंपे अइक्करे निक्कलणे निति से रोहे चंदरोडपथंडइंडे पा. वे अभिगहियामछादिदठी अगुव्यस्थिनामधेजे सुज्जसिवे नाम धिज्जाइ अहेसि, तस्स य धूया सुज्ज. सिरी, साय परितुलियसयलतियणनरनारीगणा लावन्न कतिदित्तिकरसोहागाइसएणं अगोवमा अत्त. ग्गा 2 / तीए अन्नभवंतरंमि इणमो हिथएण दुधितिय PRESENSE
SR No.004371
Book TitleAgam Sudha Sindhu Part 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendravijay Gani
PublisherHarshpushpamrut Jain Granthmala
Publication Year1975
Total Pages210
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_mahanishith
File Size23 MB
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