________________ BRAHERROREA २ातत्यथ / श्री आगमसुधासिन्धु: :: दशमो विभाग: महया किले सेणं, धन्नं पाउं घराधरिं। जीबायेऊणजणगे, गोउलिस्स समल्लिओ // 28 2 // तहियं नियजणणिरछीरं, आश्यिमाणे निबंधिउं / (छावरुए) गोणिो हमाोणां, जं बदं अंतराश्यं // 283 // नयां सो लवण. उजाए, कोडाकोडीभवंतरे। जीयो धन्नमलहमायो / (बसंती उज्झंतो नियलिज्जती हम्मतो दम्मतो) विछो इज्जंतो यहडिओ // 24 // उरवन्नी मणुजोगीए , डागिणितेण गोथमा।। तत्थ य सायायपालेह, कीलिउं डिउं गया // 25 // तओ उव्वरिटमणिहइं, लर्दु माणुसत्तां / जत्य य सरीरोसेणं, एमहतमहिमंडले // 26 // जामडजामघडियं वा, यो लदं वेरतियं जहिय। पंचव उ घरे गामे, नगरपुरपरयोसु गीयम। मणुयत्ते, गारयदुक्याण सरिन्मए / अयोगे रणरण्णेयं, घोरे दुक्वेऽणु भोत्तुणं // 28 // सो लक्षणदेवीजीवी, सुरोदज्झागदीसओ / मरिऊया स्तमि पुढवि, उनबन्नी वडोहणे // 29 // तत्थ यतं तारिसं दुकरवं, तित्तीसं सागशेवमे / अणुभविकणं उववन्नो, वंशागोणितणेय य // 29 // स्वेत्तवलगाइं चमती,भंअंती य चरंति या सा गोणी बहुजणोहेहि मिलिऊयागाहपंकवलए य. वेसिया // 291 // तत्य खुत्ती जलीयाहि, लसिज्जंती तहेव य / कागमादीहि लप्यंती.काहाविरठा मरेउणं // 292 // ताहे विजलधन्ने रण्यो, मलहेसे दिठीविसो सध्यो होङया पंचमगं, पुढवि पुणरवि गओ // 293 // एवं सो लक्षणज्जाए, जीवो गोथमा / चिरं। घण घोर. टुक्रुसंतत्तो, चउगइससारसागरे // 294 // नारयतिरियः कुमणुए मुं, आहिंडिता पुगोविहं / होही सेणियजीवस्स, नित्य पउमरस युजिया // 295 // तत्यय दोहा या FREE