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________________ औमहानिशीथसूत्र :यशने 60 16. इहागभी समुदमि, महामन्छो भवेषण पुणोनि सत्तमाए थ, तितीसं सागरीवमे // 19 // दुन्विसह दारुणं दुकावं, अणुहविकगिहागो। तिरियपस्वी उबरन्नो कागताएस ईसरी॥१९॥ जीवि पमियं गतु, उन्वहिस्ता इहागओ। दु. इंटसाणो भक्ताण. पुणरवि पदमियं गभी ॥४९३उवरिटत्ता तओ इहई, खरी होउं पुणी मओ / उपबन्नो रासहत्ताए,उन्मबगहणे निरंतरं॥१९४ाताहेमणस्सजाईए.समप्यन्नी पणो मी / उबरन्नो वणयरताए, माणुसत्तं समागभो // 19 // नोवि मरि. समुप्यन्नो, मज्जारते स इसरी पुगोवि नि. रए गंतु. इह सीहत्तेणं पुणो मभो // 196 // बजिउंचउत्थीए, सीहत्तेण पुणोऽविह। मरिमण पर पीए, गत इस समागओ // 1971. तोवि नरयं गंतु, चक्कियत्तेण ईसरी / नओवि कुठी होऊगं, बहदुम्वदिभो मओ // 17 // किमिएपिज्जमाणस्स, पन्नासं संबछरे / जाऽकामनि जरा जाया,तीए देवेसू उववन्जिउं॥१९९॥ तओह नरीमतं, लणं सत्तमि गी। एवं नरगतिरिच्छे मुं, कुरिध्यमणुएसु ईसरी // 2 // गोयम! सुरं परिभमिउं, घोरदुमयसुटुक्खिभो। संपइ गोसालो जाओ, एस सच्चेवीसरजिनी // 20 // तम्हा एवं वियाणेत्ता, अचिरा गीयत्ये मुणी। भवेन्जा विदियपरमन्थ, सारासारपरिन्नुए सारासारम. याणेत्ता, अगीयत्यत्तदोसओ। वयमेतेयाविरुजाए,यापगं जं समन्जिथं // 20 // लेणं नीर अहभाए,जा जाही ही नियंतणा / नारयतिरियकुमाणुस्तं सोच्या को दि. इं लभे? // 24 // से भय! का उण सा रज्जज्जिया किंवा तीए अगीयोसेणं वयमेगापि पावकम्मं समन्जियं जम्स M विवाग यं सोऊणं णो घिई लभेज्जा ? गोथमा! गं इहेब भारहे वासे भही शाम आयरिभो अहेसि, तस्स
SR No.004371
Book TitleAgam Sudha Sindhu Part 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendravijay Gani
PublisherHarshpushpamrut Jain Granthmala
Publication Year1975
Total Pages210
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_mahanishith
File Size23 MB
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