________________ BREPREPRESS श्री पञ्चकल्प भाष्यम् [6] होति / / / / सामाइथ छेटुवहावणं च परिहारमुद्धियं चैवात तो य मुहमरा अहवन्यायं चैव बोधवं॥७॥ अहवा वयसमितादी सराग तह वीतरागमहवावि। स्वाइग घोचसमितं उवसामयं वा भवे तिविहं / (दारं)॥०॥ भेदा उ चमहेणं होति इमे णाणदंसणाणं तु। घाइयवोनममियं दुविहं गाणं मुणेथव्वं / / 1 // स्वइयं केवलणाणं यओवसामथाई सेसणाणाई क्वइयं सभोवसमियं उनसमियं दंसणं तिविहं // 2 // कसेतं चरितं णिथंड तह संजयाण ते कतिहा १।पंच णिथंडा पंचैव संजया हतिमे कमसी // 13 // पुलाए बाम कुसीलो होति णियं? तहा सिणार यएएसिं एक्केवको पंचोलही होति बोधव्यो॥४॥ गाणपुलाए तह दमणे य चारित लिंग असुहमे। एसो पंचविही खलु पुस्तगणियही म. यच्चो // 5 // आभोगमणाभोगे तह संचुरम संधु अहामुही। एसो पंचाल ही तु बउणियही मुणेथयो / / 6 // दुनिही होति कुमीलो पोडे सेवणया तहा कसाए या एक्कोक्को पंचविही परवणा तैसिमा होइ / / 0 // णाणपडिम्मेवणाएदं. सणचरणे य लिंग अहमहमे / पाडे भेवणाकुसीलो पंचविही एम णायची uter पाणकसायकुसीले देसण चरणे य लिंग अहमुहमे। एस कसाथकु. सीली पंचविही तू मुणेयध्वो // पठमा समणियह भपठम-चरिमेय तह अचरिमे या तत्तो य अहासुहमे पंचमए होति णायचो॥९॥चबिहसिणाए ऊ अच्छवि तह अन्सबले अकम्मंसे। संसुद्धणाणदंसणधरै य होती चउत्धे तु // 91 // भरहा जिणे य केलि अप्परिमापीय होति पंचमए। एते पंच विकल्या सिणायस्स तु होति गायचा // 12 // पंचविह संजता वी सामाइय-डेउवदह-परिहारे / सुहुमे य अहक्याए एक्केरके ते पुणो टुविहा 193 // इरिए आवकही सामाव्यसंजए भवे दुविहे। दुविहे छेओवढे सतियारे जितियारे य / / 14 // परिहाचि सुधीए णिविसमाणे तहेव निविट्ठे। दुविहे य मुहमरागे संकिस्संत विसुझंते // 15 // अहवाओ वि य दुविहीं छउमत्यो चैव केवली चेव। एसो तु संजतो सलु पंचविही होति णायचो 1196 // सामाइयम्मि उकए चाउज्जाम अगुत्तरं धम्म / ति विहेण फासयतो मामाइय-संजती स खलु ।।९॥छेत्तूण तु पोरेयाग पोराणं तो वेति अप्याणं धाम्मे पंचजामे ओघडारणो म स्खलु दा२९॥ परिहरति जो विसुद्धं पंचवा. मं अणुत्तरं धम्म / तिविहेण पामथ तो परिहारियमजतो स खलु लोभमणु चौदं तो जो पल उन सामजी व सवओ वा सो सुहमसंपराओ अहक्या F