________________ [222] श्री आगम सुधा सिन्धु: :: नवमो विभागः च्छिन्ने एवं जो से कप्पड़ गणं गरेत्तए, नगवं च से पलिच्छिन्ने एवं से कप्पड़ गण धारेत्तए २१०॥स. भिक्खू य इच्छेज्जा गणं धारेत्तए,जों से कप्पड पैरे अणापुच्छिता गणं धास्तए,कप्पइसे धेरै आपुच्छित्ता गणं धारेत्तए धेश यसेवियरेज्जा एवं से कप्पर गणं धारेत्तए.धेश य मे जो वियरज्जा एवं से नो कप्पड़ गणं धारतए राजण्णं धेरै अघिइण्णं गणं धारेज्जा से सन्तरा छए वा परिहारे वा, जे ते साहम्मिथा 3डाए विहरति नदिध गं तेसिं कई छएवा परिहारे वा 3 / 116 ॥सू.२॥ तिवासपरियाए समणे निगाथै आधारकुसले मंजमकुमले पचयणकुसले पन्नत्तिकुमले मंगाकुसले उजगहकुसले अक्स (सु)याया अभिन्नाथारे :सबलाथारे असंकिलिहाथारचरिते बहुस्सुए बझागमे जहज्जेणं आयारपकप्यधरे कप्पइ (आयरि)उवन्झायत्ताए उहिमित्तए।म.३॥ सच्चेवणं से तिवासरियाए समणे निग्गंधे नो आयारकुसले जाव नो उनगाहसले वयाथारे भिन्नायारे सबलायारे संविलिहायाचरिते अप्पमुए मप्यागमे लोकप्पइ आरिउरझायत्ताए उद्दिसित्तष्ठ।सू.४॥ एवं पंचवासपरियाए समणे निगगंधे आधारकुमले जाच असंकिलिट्ठायारचरित बहुस्मुथै बझागमे जहन्नेणं दमाकप्पयवहारधरे कप्पड आथरिथविज्झायत्ताए उद्दि सिन्तए ।सू.५॥ सच्चेव से पश्वासपरियाए समणे निग्गन्ये नो आयारकुसले जाव अप्पासुए अप्पागमे नो कप्पड आथरियउवा यत्ताए उहि मित्तए॥सू.६॥ अडवासपरिवाए समणे जिग्गन्ये आयारकुसले जाव जहन्जेणं हाण-समवायधरे कप्य से आस्थताए उवज्झायताए परतिताए घेरताए गणिताए गणावच्छेइयत्ताए उहिमित्तएस.सच्चवर्ण से अहवासपरियाए समणे निग्गन्धे जो आधारकुसले जाव लौ कप्पड आयरिथताए जाव गणावच्छेइयत्ताए उदिसिनप १२.॥निरुद्धपरियाए समणे निगान्धे कप्पइ सविसं आधरियउवझायत्तए उहिमित्तए 1 / से किमाई भंते !,अस्थि जघराणं तहासवाणि कुलाई कणि पत्तियाणि थेज्जाणि वेसासियाणि समथाणि सम्मुइकणि अणुमयाणि बहुमयाणि भवन्ति / तेहिं कडेरि नहिं पत्तिएहि तेहिं धेज्जेहिं तेहि बेसासिएहि तेहिं 'सम]ि तेहिं सम्भुइकटं जं से निपरियाए समणे निग्गन्धे कप्पड़ 獎獎獎獎獎獎獎獎獎獎獎獎獎