________________ * * * * श्री पञ्चकल्प भाष्यम् [1920 * ऊण मेत्तकालपनन्ज / तो संघमज्झयारे ववहरियन गिस्सा णं // 2357 // गिदरिसण तत्थ इमे तगरा णगरी यसोलसायरिया / अण्णायणायकारी जस्थाबवहारी अढ इमे // 2358 // मा कित्ते कंकडुयं कुणिम पन्कुत्तरं च बच्चाई / बहिरं च गुंडसमण अबिलसमणच निद्धम्म // 2257 / / कंकडओ विन मासी सिद्धिं न उनेति तस्सं ववहा / कुणिमणिहो व मुज्झति दुच्छेज्जो एव वितियरस // 2260 // . पकुल्लाव भयातो कज्जमि ज सेसत उदीरोति / पादेणं आउत्तिय उत्तर सोचाहणेण तु // 2261 // रोमधयते कज्ज नच्चादी णीरस बिनासणेति / ऋडिते कज्जे संते जहिरो र भणाति ण सुत मे // 2262 // मरइटलाडपरछा करिमाया लाड यंहासडेिसे / पावारभंडिधुभां दसियागणण पुणो दाणे // 2262 // गुंडादि ए. / वमादीहिं हरति मोहेतु ते तु ववहार / अंबफकोहि अप्यो ण. णेति सिद्धि च क्वहारी // 1264 // एते अंकज्जाकारी गराए मा. सि तमि उ जुमि / जेहि कया ववहारा सोडिन्तऽण्णरज्जेसु॥ / / 2265 // इहलोगमि अकित्ती परलोगे दुगाती धुवा तेसि अणा - - णाए जिणिदाणं जे वनहार च जनहरति / 2266 // बत्तीस तु म. हस्सा गच्छो उस्कोसओ य उसभमि / बहुगच्छलग्गडकना इत्ति. यमित्ताण जन्य संघरण 206 // किन्नेह समितं धीर सिबकोदहति चे अज्जास / अरह धम्मण्णा मंदिलगोविंददत्तं च / / 226 // एते कज्जकारी नगराए आसि तामे उ जुगामि / जेड कता जनहारा अक्सोभा अण्णरज्जेसु // 26 // इंडलोमि य कित्ती परलोए मुरगती धुवा तेमि / आगाए जिणिदाणा जेवनहार वनहराति // 20 // तहिय पुण करिसएणं अभियचउडोति समशेण भण्णात सुणसू इणमो जारिसएणोतच 1271 // पाराय. णे समते घिरपरिवाडी पुणो वि सोनिग्गो / जो निगगतो विदिष्णे गुसहि सो डोति नवहारी // 22 // मूलपारायण पठम बितियं / बभेतिमं / ततिय च हिरवसेस जदि सुज्झति गाहगो // 2073 // KAREEFFEREERS Paccordan 2 . t + N