________________ श्री पञ्चकल्प भाष्यम् [1050 / पत्तेय बुद्धमादी लिंगे धउमस्थ तो गडणं VER // वत्थासण मक्कारो वं. दण अभुटहणं तु णायब्वं / पणिवादो तु णमसण संलगुलिकत्तणा श्या // 13 // ददाण दव्बलिंग कच्चंतेताणि इंदमादी व निगम्मि आवेज्जते पणज्जती एन विरोति // 1464 // कहेंतो समलिंगेणं धम्मनसम्मतो भवे / अलिग बोते तं कीस जाणतो ण करे तुम ? // 1565 // पते. यबुद्धो जान उ गिहिलिंगी अहव अण्णलिंगी उ / देवा वि ताप एंति मा पुज्ज होहिनि कुलिंग // 1466 ॥ण य गं पुच्छति कोती केरिमओ डोति तुज्झ धम्मोति / ण य सनिलंगविडण उमत्थो जाणे सिओति // 146UR एसो तु लिंगकप्यो अटुणा बोच्छामि उवडिकप्यं तु / जो जस्स भवे उनही जि. णधेराणं जहाकमसो // 1468 // ओडे उक्म्गडे या दुनिहो उबही तु होति णाय ब्बो / ओहोवही तु तिण्डं ओवरहिओ भने दोण्हं // 16 // निणकप्ये धेर. - कप्ये कप्पातीत यतिण्डमोघो उ / धेराणमुवम्माहिमो साहूणं संजतीणं चpal बारस चोद्दस पणुवीस णव य एक्को य णिलवडी चेव / जिण धेर भज्जपत्तेयबद्धतित्थकरतिस्थकरे // 1471 // पाणीपाडेग्गहीया पडिग्गहधारी य होति जिणकम्ये / धेश पडिग्गहधरा कप्यादीया तु भइयव्वा // 14 // बिर्यातयचउक्कपणए णव दस एक्कारमेव बारमगं / एने अह विकमा उडिम्मिवि होति जिणकप्पे // 1473 // अहवा दुगं च पणगं उर्वाहेक्स तु होति दोणि वि। विकण्या पाणिपडिग्गहियाण अपाउय सपाउयाण च 11.1474 // रयहरणं मुहपोती एयं दुयगं अपाउयंगाणं | रयहरणं मुहपोती तिणि य पच्छाद इतरेनिं // 1405 // उग्गहधारीणं पि य दुविही उवही समासतो होति / णविड दुवालसविहो अपाउय सपाउयाणं च॥१६॥ पनं पत्ताबंधो पातहवणं च पातकेसरिया / पडलाई रयत्ताणं च गोच्छ. ओ पाणिज्जोगो ॥१४॥रयहरणं मुहपोती णनहएसो अपाउमंगाणं इयरेसिं एमेन य अतिरेगा तिणि पच्छागा // vor| एते चेबदबालस मत्तउ अतिरेग चोलपट्टो य / एसो य चोहसविडो उवही सलु धेरकप्पम्मि // 1479 // अज्जाणं एमेव य बोलत्याम्म गरि कमळं तु / अतिरेग अंगलगा इमे तु अण्णे मुणेयवा // 40 // उग्गह गंतग पटो अइढोलग चलपिया य बोद्धव्वा / अभिंतर बाहिणियंगणी य तह कंचुए चेव // 14 // उक्कच्छिय वेकच्छिय संघाडीवसंधकरणीय /