________________ 9222222222222 श्री प-यकल्प भाष्यम् [13] / 1423 // आयरिया अपमन्ना सुतप्पसायं 3 ते ण कुवंति / णाहीतं तेण सुतं जावइएणं तु पज्जत्तो // दारं // 1 // 24 // सोतसविडरोगाणं # डवा गाठं अभिद्दएणं तु / णाधीत होज्ज मुतं ते य इमे वण्णिता रोगग // 1425 // कामे मासे. जरे दाहे जोरिमन्ने भगंदरे / अरिसा अजीरए दिदही मुद्धमले अकारए // 1 // 26 // अच्छीनेयण तह कण्णवेयर कंदु कोळ दगउरं / एते ते सोलस वी समासतो चण्णिता रोमा // दारं // 1427 // अण्णो पडिबंधेणं गुरुकुलबासं चेव आवसती / तेणं पार्डिज्जति ऊ के पुण पडिवधिमे गुणस // 14 // सो गालो मा वड्या तं भत्तं भद्दओ जणो जन्य / एताई संभरंतो गुरुकुलबास गरोएति // 1 // 29 // सक्कारो सम्माणो पूजइ मे भोइओ तहिं गामे / आरिभो महतरमो ए. रिसता को नहिँ सइठा // 1430 // मच्छंटुढाणिवज्जणस्स मच्छंदडतमिकलम सच्छंदजंपियस्म य मा मे सन् वि एगागी // 13 // एतेहि ऊ अभागी सीताइणं ग देनि तुरंतु। तो णाहिज्जति सो ऊ गुरुकुलवासं असेवेंतो // 1432 // एनेडिं (ण) पडिवज्जे अणुसदि दारिध परिममतं ।का पूण सामाधारी जिणकप्पे डोतिमा सा उ17३३॥ मेले काल चरिते लिस्थे परियाग आगमे वेदे / कय्ये लगे लेक्सा गणणे झाणे याभिग्गहे // 1535 // पव्वाच्या मुंडावण मणमा वण्णे वि से अणुग्घाता / कारणणिप्पोडेकम्मे भन्नं पंयो य ततियाए // 1535 // एमो जिणकप्पो सलु समासतो वणितो सरिभवणं / दारं। एतौ उ धेरकप्पं समामओ में गिसामेहि // 1436 // तिविम्मि संजमम्मि उ बोधब्बो डोति धेरकप्यो तु / सामइय-छेदपरिहारिए य तिनिहरिम एम्मि ॥४३७॥हिय अदिटप न कम्मे सामाइयसंजसो मुणेयव्यो / छट्परिहारिया पुण णियमा उहवांति हितकय्ये // 1438 // एतेसु धेरकयो जह जिणकप्पीण अग्गहो दोमु / गहण चाभिग्गहाणं पंडिं दोहुँचण तह इहं // 1439 // बाले बुटे सेहे अगीतत्थे णाणदंसणप्पेडी / दुब्बलसंघयणनिम य गच्छं पइ ऐसणा भणिता // 10 // जसंभवतु मेसा कोनादि विभामियच दारा दु / उरिं तु मासकप्पो स्थिरतो बिभामते सेमि पदारं॥१४॥ इति एस धेरकप्पो एती बोच्छमाम लिंगकता नहि. यं तु लिंगकप्पो इण्मो निणकप्ये अवती तु ॥१२॥ठणहमा SE E EEEEEE