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________________ प्रभावना अने रक्षा माटे सदाने माटे जेओश्री ए कृपा वरसावी छे एवा परम-: शासन प्रभावक जिनवचनना अजोड उपदेशक पूज्यपाद आचार्यदेवेश श्रीमद्विजयरामचन्द्रसूरीश्वरजी महाराजाना वात्सल्य मार्गदर्शन अने प्रेरणा आ आगम संपादनना कार्यमा अनन्य पल बन्या छे अने एथी आ संपादनमा जे सफलता प्राप्त थई छे तेमां बधो उपकार तारक उपकारी शासनप्राण पूज्यपाद आचार्यभगवंत श्रीजीनो छे, ए माटे तेओनो जेटलो आभार मानु तेटलो ओछो छ / वली आ आगम संपादनना कार्यमा मार्गदर्शन प्रेरणा अने उत्साह आपवा माटे स्वर्गस्थ पूज्यपाद पर्यायस्थविर आचार्य भगवन्त श्रीमद्विजयमेरुसूरीश्वरजी महाराजा तया परम शान्तमूर्ति गुरुदेवसेवारस निमग्न पूज्यपाद आचार्यदेव श्रीमद्विजयमहोदयसूरीश्वरजी महाराज तथा पूज्यपाद प्रवचन प्रभावक आचार्यदेव श्रीमद्विजयरविचन्द्रसूरीश्वरजी महाराजने जरा पण भूली शकुतेम नथी / तेओश्री आ कार्यमा सदा उत्साहप्रेरक मार्गदर्शक बनता हता, तपस्वी मुनिराज श्री नरवाहनविजयजी महाराज विचारविनिमयमा सहायक बनता हता। आगम सुधासिन्धुना आ कार्यमा एक या बीजा प्रकारे उत्साह वधारनार पूज्य आचार्य भगवन्तो, वयोवृद्ध पू० आचार्य देव श्रीमद्विजयप्रतापसूरीश्वरजी महाराज, पूज्यपाद आचार्यदेव श्रीमद्विजयरामसूरीश्वरजी महाराज ( डहेलाना उपाश्रय वाला ), पूज्यपाद आचार्यदेव श्रीमद्विजयकनकचन्द्रसूरीश्वरजी महाराज, पूज्यपाद आवायदेव श्रीमद्विजयसुदर्शनसूरीश्वरजी महाराज, पूज्यपाद आचार्यदेव श्रीमद्विजयभद्रङ्करसूरीश्वरजी म. तथा तेओश्रीना शिष्यरत्न पं. श्री पुण्यविजयजी म०, पू० आ० श्रीमद्विजयभुवनचन्द्रसूरीश्वरजी महाराज, पू० आ० श्रीविजयसोमचन्द्रसूरीश्वरजी महाराज तथा पू० पाद पंन्यासजी महाराज श्री भद्रंकरविजयजी गणिवर, पू० मुनिराज श्री जयंतविजयजी म. (त्रिस्तुतिक), पू० मुनिराज श्री जयध्वजविजयजी महाराज, पू० मुनिराज श्री जितेन्द्रविजयजी म. तथा पू० मुनिराज श्री गुणरत्नविजयजी महाराज, पू० मुनिराज श्री रत्नभूषणविजयजी महाराज मुनिराज श्रीमहाबलविजयजी महाराज मुनिराज श्री भद्रशील विजयजी महाराज आदि प्रत्ये कृतज्ञता प्रगट करू छु। मारा विनेय वेयावच्ची मुनिराज श्री योगीन्द्रविजयजी म० तरफथी आवा विशाल कार्यना संपादनमा एकाग्रपणे उद्यमशील रहेवानी खूब अनुकूलता रही छे तेनी अनुमोदना करुं छु। *xxkkkkk kkrrrrrrrrrrk
SR No.004368
Book TitleAgam Sudha Sindhu Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendravijay Gani
PublisherHarshpushpamrut Jain Granthmala
Publication Year1978
Total Pages532
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, agam_jambudwipapragnapti, agam_jambudwipapragnapti, agam_nirayavalika, agam_kalpavatansika, agam_pushpika, agam_pushpachulika, & agam_vrushnidasha
File Size13 MB
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