________________ 44 - श्रीमदागमसुधासिन्धुः --सप्तमो विभागा चंदण-दहर दिन्नपंचंगुलितलं उवचिय चंदणकलसं चंदणघड-सुकय जाव गंधुद्धाभिरामं सुगंधवरगंधियं गंधवट्टिभूनं करेह कारवेह करेत्ता कारवेत्ता य एप्रमाणत्तिनं पञ्चप्पिणह 4 / तए णं ते कोडं विपुरिसा भरहेणं रगणा एवं कुत्ता हट्टतुट्टा करयल जाव एवं सामित्ति श्राणाए विणएणं वयणं पडिसुणंति 2 ता भरहस्स अंतिधाश्रो पडिणिक्खमंति 2 त्ता विणीचं रायहाणिं जाव करेत्ता कारवेत्ता य तमाणत्तियं पचप्पिणंति 5 / तए णं से भरहे राया जेणेव मजणघरे तेणेव उवागच्छइ 2 ता मजणघरं अणुपविसइ 2 ता समुत्तजालाकुलाभिरामे विचित्त-मणिरयणकुट्टिमतले रमणिज्जे राहाणमंडवंसि णाणा मणिरयण-भत्तिचित्तंसि गहाणपीढंसि सुहणिसगणे सुहोदएहिं गंधोदएहिं पुष्फोदएहिं सुद्धोदएहि श्र पुराणे कलाणग-पवर-मजणविहीए मन्जिए तत्थ कोउसएहिं बहुविहेहिं कल्लाणगपवर-मजणावसाणे पम्हल-सुकुमाल-गंधकासाइबलूहिअंगे सरस-सुरहिगोसीस-चंदणाणुलित्तगत्ते अहय-सुमहग्ध-दूसरयण-सुसंवडे सुइमाला-वगणगविलेवणे भाविद्धमणिसुवरणे कप्पित्र-हारद्धहार-तिसरित्र-पालंव-पलबमाणकडिसुत्त-सुकयसोहे. पिणद्ध-गेविजग-अंगुलिजग-ललिअंगय-ललिअकयाभरणे हाणामणि-कडग-तुडित्र-भित्रभूए अहिश्रसस्सिरीए कुंडलउज्जोइत्राणणे मउड-दित्तसिरए हारोत्थय-सुकयवच्छे - पालंव-पलबमाणसुकय-पडउत्तरिज्जे मुदिशा-पिंगलंगुलीए णाणामणि-कणग-विमल-महरिहणिउणोपवित्र-मिसिमिसिंत-विरइत्र-सुसिलिट्ठ-विसिट्ठ-लट्ठ-संठिश्र-पसत्थश्राविद्धवीरखलए, किं बहुणा ?, कप्परुक्खए चेव अलंकिग्रविभूसिए णरिंदे सकोरंट जाव चउ-चामर-बालवीइअंगे मंगल-जयजय-सहकयालोए श्रोगगणणायग-दंडणायग जाव दूधसंधिवालसद्धि संपरितुडे धवल-महामेहणिग्गए इव जाव ससिव्व पियदंसणे गरवई धूव-पुष्फ-गंध-मल्लहत्यगए मजणघरायो पडिणिक्खमइ 2 ता जेणेव भाउहघरसाला जेणेव चक्करयणे