________________ सपादकीय निवेदन श्री श्रमण संघमां आगमो कंठस्थ करवामां, स्वाध्याय करवामां, विस्तृत टीकाओना वांचन पछी मूलसूत्रोर्नु पुनरावर्तन करवामां, आ मूल सूत्रोना संयुक्त संपादन थी धणी अनुकूलता रहेशे अने एथी उत्साही मुनि भगवंतो होशे होशे सूत्रो कंठस्थ करीने आगम श्रुतने धारण करवा माटे पण समर्थ बनी शकशे / 2, 5, के 10, 20 सूत्र कंठस्थ करनारा घणा मुनिवरो तैयार थशे अने पुरतो प्रयत्न थाय तो लगभग एक लाख श्लोक प्रमाण मूल सूत्रो कंठस्थ करी धारी राखनारा अनेक गणो मुनिवरोमां थइ शकशे / 'ज्ञानधनाः साधवः' 'शास्त्रचक्षुषः साधवः' ए विधान मुजब श्रमण संघना प्राण समान आ आगम सूत्रोनुश्री श्रमण भगवंतो द्वारा विशेष परिशीलन थतां श्रीसंघने माटे श्री शासन ने माटे घणी उज्वलता फेलाशे अने ए आशयथी स्वपरना श्रेयकारी आगम सूत्रोनां संशोधन संपादनमा अविरत उत्साह प्रवर्तमान छ। . प्रकाशननी सगवडता माटे श्री गौतम आर्ट प्रिन्टर्स ( ब्यावर ) ना व्यवस्थापक श्री छगनलालभाई जे खंत अने उत्साह बतान्या के तेने कारणे आ प्रकाशनो समयसर प्रकाशित थइ रह्यां छे। चरम तीर्थपति श्रमण भगवान महावीर देवे प्रकाशेल जिनवाणीनो प्रभाव पांचमा . आराना छेडा सुधी रहेशे / ए ज्वलंत जिनवाणीनो प्रकाश आपणा आत्माने योग्यता अने अधिकार मुजब अजवाल नारो बने अने जिनवाणीनी आ उपासनाभक्तिमा भावना पूर्वक रस लइ रह्यो छु ते भावोल्लास टकी रहे अने सौ श्रुत आराधनामां उजमाल बनीए एज मारा अंतरनी शुभ अभिलाषा छ / वीर सं० 2504 वि० सं० 2034 / महा सुद६ सोमवार ता०१३-२ 78 मु० अलाउ (ता. धंधुका) (गुजरात) .. हालारदेशोद्धारक कविरत्न पून्य आचार्यदेव श्रीमद्विजयअमृतसूरीश्वरजी महाराजानो ____चरणसेवक पं. जिनेन्द्रविनय गणी