________________ श्रीनिरयावलिकासूत्र :: वह्निदशानामकः वग्गः 5 ] बालभावे विगणयपरिणयमित्ते जोव्वणगमणुप्पत्ते तहारूवाणं थेराणं अंतिए केवलबोहिं बुद्धिमत्ता अगाराथो श्रणगारियं पवजिहिति 2 / से णं तत्थ श्रणगारे भविस्सति 3 / इरियासमिते जाव गुत्तवंभयारी 4 / से णं तत्थ बहूहिं चउत्थछट्टट्ठमदसमदुवालसेहिं मासद्धमासखमणेहिं विचित्तेहिं तवोकम्मेहि अप्पाणं भावेमाणे बहूई वासाई सामगणपरियागं पाउणिस्सति 2 मासियाए संलेहणाए अत्ताणं भूसिहिति 2 सढि भत्ताई श्रणसणाए छेदिहिति 5 / जस्सट्टाए कीरति णग्गभावे मुडभावे राहाणए जाव श्रदंतवणए अच्छत्तए श्रणोवाहणाए फलहसेना कटुसेजा केसलोए बंभचेरवासे परघरपवेसे पिंडवाउलद्धावलद्धे उच्चावया य गामकंटया अहियासिजति, तम४ श्राराहेहिति, पाराहित्ता चरिमेहिं उस्सासनिस्सासेहि सिज्झिहिति बुझिहिति जाव सवदुक्खाणं अंतं काहिति 6 // सू० 138 // एवं खलु जंबू ! समणेणं भगवया महावीरेणं. जाव निक्खेवो. 1 / एवं सेसा वि एक्कारस अज्झयणा नेयव्वा संगहणी अणुसारेण बहीणमइरित्त एकारससु वि 2 // सू० 131 // ॥पंचमो वग्गो समचो // 5 // ... निरयावलियासुयखंधो समत्तो। संमत्ताणि उवंगाणि / निरयावलिया उवंगे णं एगो सुयखंधो पंच वग्गा पंचसु दिवसेसु उहिस्संति, तत्थ चउसु वग्गेसु दस दस उद्दे सगा, पंचमवग्गे वारस उद्देसगा। निरयावलियासुयखंधो समतो / निरयावलियासुत्तं समत्तं // ग्रंथाग्रं 1100 // // इति श्री निरयावलिकासूत्रम् //