________________ 434 ] ( श्रीमदागमसुधासिन्धुः :: सप्तमो विभागः त्तरं च सतमराणं / छच्च सया छराणउया महग्गहा तिरिण य सहस्सा // 3 // अट्ठावीसं कालोदहिमि बारस य सहस्साई / णव य सया परांगासा तारागणकौडिकोडीणं // 4 // " 17 / ता कालोयं णं समुद्द पुक्खरखरे णामं दीवे वढे वलयाकारसंठाणसंठिते सव्वतो समंता संपरिक्खित्ताणं चिट्ठति 18 / ता पुक्खरखरे णं दीवे किं समचकवालसंठिए विसमचकवालसंठिए ?, ता समयकवालसंठिए नो विसमचकवालसंठिए 11 / ता पुक्खरवरे णं दीवे केवइयं समचकवालविक्खंभेणं ?, केवइयं परिक्खेवेणं ?, ता सोलस जोयणसयसहस्साई चकवालविक्खंभेणं एगा जोयणकोडी बाणउति च संतसहस्साई अउणावन्नं च सहस्साई अट्टचउणउते जोपणसते परिक्खेवेणं श्राहितेति वदेजा 20 / ता पुक्खरखरे णं दीवे केवतिया चंदा पभासेंसु वा 3 पुच्छा, तधेव ता चोतालचंदसदं पभासेंसु वा 3, चोत्तालं सूरियाणं सतं तवइंसु वा 3, चत्तारि सहस्साई बत्तीसं च नक्खत्ता जो जोएंसु वा 3, बारस सहस्साई छच्च बावत्तरा महग्गहसता चारं चरिंसु वा 3, छराणउतिसय. सहस्साई चोयालोसं सहस्साई चत्तारि य सयाई. तारागणकोडिकोडीणं सोभं सोभेसु वा 3, 21 / कोडी बाणउती खलु अउणाणउतिं भवे सहस्साई। असता चउणउता य परिरयो पोक्खरवररस // 1 // चोत्तालं चंदसतं वत्तालं चेव सूरियाण सतं / पोक्खरवरदीवम्मि च चरंति एते पभासंता // 2 // चत्तारि सहस्साई छत्तीसं चेव हुंति. णवखत्ता। छन्च सता वावत्तर महग्गहा बारह सहस्सा // 3 // छगणउति सयसहस्सा चोनालीसं खलु भवे सहस्साई। वत्तारि य सता खलु तारागणकोडिकोडीणं // 4 // 22 / ता पुक्खर. वरस्सणं दीवस्स बहुमज्मदेसभाए माणुसुत्तरे णामं पव्वए पराणत्ते, व? वलयाकारसंगणसंठिते जे णं पुक्खरवरं दीवं दुधा विभयमाणे 2 चिट्ठति, तंजहा-अभितरपुक्खरद्धं च बाहिरपुक्खरद्धं च 23 / ता अभितरपुक्खरद्धे णं किं समचकवालसंठिए विसमचकवालसंठिए ?, ता समचकवालसंठिए णो