________________ श्रीम सूर्यप्रज्ञप्तिसूत्रं :: प्रा० 15 ] [ 421 चंदं गतिसमावगणं सूरे गतिसमावराणे भवति 1 / से णं गतिमाताए केवतियं विसेसेति ?, बावट्ठिभागे विसेसेति 2 / ता जया णं चंदं गतिसमावरणं णक्खत्ते गतिसमावराणे भवइ से णं गतिमाताए केवतियं विसेसेइ ?, ता सत्तट्टि भागे विसेसेति 3 / ता जता णं सूरं गतिसमावराणं णक्खत्ते गतिसमावराणे भाति से णं गतिमाताए केवतियं विसेसेति ?, ता पंच भागे विसेसेति 4 / ता जता णं चंदं गतिसमावराणं अभीयीणक्खत्ते णं गतिसमावराणे पुरच्छिमाते भागाते समासादेति, पुरच्छिमाते भागाते समासादित्ता णव मुहुत्ते सत्तावीसं च सत्तट्ठिभागे मुहुत्तस्स चंदेण सद्धिं जोएति, जोयं जोएत्ता जोयं अणुपरियट्टति, जो 2 ता विष्पजहाति विगतजोई यावि भवति 5 / ता जता णं चंदं गतिसमावगणं सवणे णक्खत्ते गतिसमावराणे पुरच्छिमाति भागादे समासादेति, पुरच्छिमाते भागाते समासादेत्ता तीसं मुहुत्ते चंदेण सद्धिं जोभं जोएति 2 जोयं अणुपरियट्टति 2 त्ता विप्पजहति विगतजोई यावि भवइ, एवं एएणं अभिलावेणं णेतव्वं 6 / पराणरसमुहुत्ताई तिसतिमुहुत्ताइं पणयालीसमुहुत्ताइं भाणितव्वाइं जाव उत्तरासाढा 7 / ता जता णं चंदं गतिसमावराणं गहे गतिसमावराणे पुरच्छिमाते भागाते समासादेति 2 ता चंदेणं सद्धि जोगं जुजति 2 ता जोगं अणुपरियति 2 ता विप्पजहति विगतजोई यावि भवति = / ता जया णं सूरं गतिसमावराणं अभीयीणक्खत्ते गतिसमावराणे पुरच्छिमाते भागाते समासादेति, 2 ता चत्तारि अहोरत्ते छच मुहुत्ते सूरेणं सद्धिं जोयं जोएति 2 जोयं अणुपरियट्टति 2 ता विपनहति विगतजोगी यावि भवति 1 / एवं छ अहोरत्ता एकवीसं मुहुत्ता य तेरस अहोरत्ता बारस मुहुत्ता य वीसं अहोरत्ता तिरिण मुहुत्ता य सव्वे भणितव्वा जाव जता णं सूरं गतिममावराणं उत्तरासाढाणक्खत्ते गतिसमावराणे पुरच्छिमाते भागाते समासादेति, 2 त्ता वीसं अहोरत्ते तिरिण य मुहुत्ते सूरेण सद्धिं जोयं जोएति