________________ 166 ] [ श्रीमदागमसुधासिन्धुः सप्तमो विभागः बहवे भवणवइ-बाणमंतरजोइसवेमाणिया देवा य देवीश्रो अ जे णं देवाणुप्पिया ! तित्थयरस्स तित्थयरमाऊए वा असुभं मणं पधारेइ तस्स णं अजगमंजरिया इव सयधा मुद्धाणं फुटउत्तिकटु घोसणं घोसेह 2 ता एप्रमाणत्ति पञ्चप्पिणह 7 / तए णं ते श्राभियोगा देवा जाव एवं देवोत्ति श्राणाए विणएणं वयणं पडिसुणंति 2 ता सकस्स देविदस्स देवरगणो अंतित्रायो पडिणिक्खमंति 2 खिप्पामेव भगवयो तित्थगरस्स जम्मणणगरंसि सिंघाडग जाव एवं वयासी-हंदि सुणंतु भवंतो बहवे भवणवइ जाव जे णं देवाणुप्पिया! तित्थयरस्स जाव फुट्टिहीतित्तिकट्टु घोसणगं घोसंति 2 त्ता एमाणत्तियं पञ्चप्पिणंति = / तए णं ते बहवे भवणवइ-वाणमंतर-जोइस-वेमाणिया देवा भगवयो तित्थगरस्स जम्मणमहिमं करेंति 2 ता जेणेव णंदीसरदीवे तेणेव उवागच्छंति 2 ता अट्टाहियायो महामहिमायो करेंति 2 जामेव दिसिं पाउ भूया तामेव दिसिं पडिगया 1 // सूत्रं 124 // ॥इति पञ्चमो वक्षस्कारः // 5 // // अथ षष्ठो जम्बूद्वीपपदार्थसंग्रहो वक्षस्कारः // ___ जंबुद्दीवस्स णं भंते ! दीवस्स पदेसा लवणसमुद्द' पुट्टा ?, हता पुट्ठा 1 / ते णं भते / किं जंबुद्दीवे दीवे लवणसमुद्दे ?, गोत्रमा ! जंबुद्दीवे णं दीवे णो खलु लवणसमुद्दे 2 / एवं लवणममुद्दस्सवि पएसा जंबुद्दीवे पुट्टा भाणिव्वा 3 / जंबुद्दीवे णं भंते ! जीवा उद्दाइत्ता 2 लवणसमुद्दे पञ्चायांत ?, गोयमा ! अर्थगइथा पञ्चायति प्रथंगइया नों पञ्चायंति, एवं लषणस्सवि जंबुद्दीवे दीवे अव्वमिति 4 // सूत्रं 125 // खंडा 1 जोत्रण 2 वासा 3 पव्वय 4 कूडा 5 य तित्थ 6 सेढीयो 7 / विजय 8 दह 1 सलिलायो 10 पिंडए होइ संगहणी // 1 // " जंबुद्दीवे णं भंते !