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________________ श्री श्वे. मूर्तिपूजक जैन संघो जोग विनंति __45 अागम मूल-पुस्तक श्रेणी योजना अंगे * निवेदन * अणावतां आनंद थाय छे के परम करुणानिधि चरम तीर्थपति श्रमण भगवान महावीरदेवे भव्य जीवोना श्रेयना हेतु रूप तीर्थंनी स्थापना की अने गणधर देवोने त्रिपदीनु प्रदान कयु. लब्धिनिधान श्री गणधर देवो द्वादशांगीनी रचना करी. जेमनी पाट परंपरा विद्यमान छे ते श्रीमत्सुधर्मस्वामीजीनी द्वादशांगी प्रवर्तमान रही अने वर्तमानमा अग्यार अंग आदि अंग प्रविष्ट अने बार उपांग दश पयन्ना, छ छेद. 4 मूल अने 2 चूलिका सूत्रो एम अंग बाह्य श्रुतज्ञान आदि विद्यमान छे ते सूत्रो उपर पूर्वाचार्य महापुरूषो विरचित नियुक्ति, भाष्य, चूर्णि, टीका, अवचूरि विगेरे आगमानुसारी श्रुत विद्यमान छे. ___ आ कल्याणकारी श्रुतना आधारे श्री महावीर परमात्मानुशासन प्रवर्तमान छे. पूज्य आचार्य भगवतो आदि मुनिराजो आदि योगवहन, गुरुकुलवास, गुरुआज्ञा आदि योग्यता मुजब अ श्रृतना अधिकारी छे. अने अयी श्रे शास्त्रीय मर्यादामा रहेता पूज्योने आ श्रुतज्ञानना स्वाध्याय आदिनी अनुकुलता रहे ते हेतुथी श्रुत भक्तिरूपे 45 आगमो मूल तेमज केटलाक सूत्रोनी टीका आदि मुद्रित करवान नक्की कयु के तेनु संशोधन अने संपादन हालार देशोद्धारक पूज्य आचार्यदेव श्रीमद् विजयअमृतसूरीश्वरजी महाराजना शिष्य पूज्य पंन्यास श्री जिनेन्द्रविजयजी गणिवर अथाग परिश्रम पूर्वक करी रह्या छ। _____aa सूत्री श्री संघना भंडारोमा तेमज पू० गुरुदेवोने अर्पण करवा प्रसारित करवानो अमे निर्णय क्यों छ / तेनी मर्यादित नकलो प्रकाशित थाय छे अने जे श्री संघो के श्रुतभक्ति रूपे श्रावको आ प्रतिओ मेलववी होय तेमगो पोतानी नकल नी यादी लखावी देवा विनंति छ। सूत्रोनी नकलो मर्यादित प्रकाशित थाय के वली बुकसेलरोने ते बेंचवा श्रापवानो नथी अटले पाछलथी प्रतिओ प्राप्त थवी मुश्केल पडशे / जेथी भंडारोने सुव्यवस्थित भने समृद्ध बनाववा श्री संघोओ पोताना सेट तरतमा लखावी देवा, पूज्य गुरुदेवो के संघोने अर्पण करवा या श्री शासननी मिल्कत रूपे सुरक्षित तत राखी, पूज्य गुरुदेवोने स्वाध्याय आदि माटे अपेण करवा सश्रावको पण आ सेट खरीदी शकशे। तेओ आ सेट वांची के वेंची शकशे नहीं / आ आगमो श्वे० मू० पू० जैनो माटे ज अपाय छ / 45 आगमो भने 4 सूत्रोनी टीकाओ आदि कार्य हाथ उपर घरायुके। चौद विभागमा 45 आगम प्रगट थाय छे. मात्र नवमो दसमो भाग तथा श्री आचारांग सूत्र टीकार्नु काम चालु छे ते सिवाय बधा आगम तेयार थई गया छे। 45 आगम सेट मूल्य रु. 700)
SR No.004368
Book TitleAgam Sudha Sindhu Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendravijay Gani
PublisherHarshpushpamrut Jain Granthmala
Publication Year1978
Total Pages532
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, agam_jambudwipapragnapti, agam_jambudwipapragnapti, agam_nirayavalika, agam_kalpavatansika, agam_pushpika, agam_pushpachulika, & agam_vrushnidasha
File Size13 MB
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