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________________ * उपरांत ग्राहक बनी प्रेरणा आपी जे जे संघो तथा धर्मप्रेमी भाविकोए ते * नाभी अनामी सर्वे भाविकोना आ महान कार्यमा सहकार आपवाना शुभ आशयनी अनुमोदना कर छु। __ आगम संशोधन-संपादननुआ कार्य महान के अने शक्ति संयोग साधन समय परिमित होवाने कारणे तेमज छमस्थ सुलभ क्षति सहज होवाथी आ कार्यमा जे जे क्षतिओ रहेली होय ते ते क्षतिओ पूज्यपाद आचार्यदेवो आदि सुधारवा कृपा करे अने मने पुणः सूचित करे जेथी क्षतिनो ख्याल आवे सुधारी शकाय अने भविष्यमा पण ते सूचन उपयोगी बने / अन्ते आ कार्यमा जे सारं थयुके ते श्री महावीर परमात्मा तेमना शासन अने शासन सेवी पूज्य आचार्य भगवन्तोना प्रभावे थयुके, अने जे क्षति 4 रही छे ते मारी के अने क्षतिओ माटे अन्तःकरण पूर्वक क्षमा याचुंछु अने श्री जिनेन्द्र शासनना प्राण एवा आ आगमोनी भक्तिनो लाम सदा मले हृदयमा एज भावना राखी विरमु छु। जैन उपाश्रय भाडला (राजकोट) सौराष्ट्र सं० 2034 फागण सुद 10 / रविवार ता० 163-78 तपोमूर्ति पू० आ० श्रीविजयका रसुरिश्वरजी म. ना पट्टधर हालारदेशोद्धारक कविरत्न पू. आ. श्री विजयअमृतसूरीश्वरजी म. नो चरणकिंकर पं. जिनेन्द्रविजय गणी
SR No.004368
Book TitleAgam Sudha Sindhu Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendravijay Gani
PublisherHarshpushpamrut Jain Granthmala
Publication Year1978
Total Pages532
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, agam_jambudwipapragnapti, agam_jambudwipapragnapti, agam_nirayavalika, agam_kalpavatansika, agam_pushpika, agam_pushpachulika, & agam_vrushnidasha
File Size13 MB
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