SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 366
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्रीमत्प्रज्ञाफ्नोपाङ्ग-सूत्रम् : पदं 28-1] [ 353 से णं जहणणेणं चउत्थभत्तस्स उक्कोसेणं सातिरेगस्स वाससहस्सस्स श्राहारट्टे समुप्पजइ, भोसरणं कारणं पडुच्च वरणतो हालिहसुकिल्लातिं गंधतो सुन्भिगंधाति रसतो अंबिलमहुरातिं फासो मउयलहुयनि राहातिं, तेसि पोराणे वराणगुणे जाव फासिंदियत्ताते जाव मणामत्ताते इच्छियत्ताते अभिझियत्ताते उद्धत्ताते नो अहत्ताए सुहत्ताए नो दुहत्ताए एतेसि भुजो 2 परिणमंति, सेसं जहा नेरइयाणं, एवं जाव थणियकुमाराणं, णवरं ग्राभोगनिव्वत्तिते उक्कोसेणं दिवसपुहुत्तस्स श्राहारट्टे समुप्पजति // सूत्रं 304 // पुढविकाइया णं भंते ! थाहारट्ठी ?, हंता ! थाहारट्ठी 1 / पुढविकाइया णं भंते ! केवतिकालस्स थाहार? समुष्पजति ?, गोयमा ! अणुसमयमविरहिते आहारट्टे समुप्पज्जइ 2 / पुढविकाइया णं भंते ! किमाहारमाहारेंति, एवं जहा नेरझ्याणं जाव ताई भंते ! कतिदिसि श्राहारेंति ?, गोयमा ! निव्वाघातेणं छदिसिं वाघायं पडुच्च सिय तिदिसि सिय चउदिसि सिय पंचदिसिं, नवरं अोसन्नकारणं न भराणति, वरागो काल-नील-लोहित-हालिद सुकिलातिं गंधतो सुभिगंध-दुभिगंधाति रसतो तित्तरस-कडुयरस-कसायरसअंबिलमहुराई फासतो कक्खडफास-मउय-गुरुय-लहुय--सीत-उराह(उसिण)गिद्ध-लुक्खातिं तेसिं पोराणे वरणगुणे सेसं जहा नेरइयाणं जाव अाहच्च नीससंति 3 / पुढविकाइया णं भंते ! जे पोग्गले थाहारत्ताते गिराहंति तेसिं भंते ! पोग्गलाणं सेयालंसि कतिभागं श्राहारेंति कतिभागं श्रासाएंति ?, गोयमा ! असंखेजतिभागं आहारेंति अणंतभागं श्रासाएंति 4 / पुढविकाइया णं भंते ! जे पोग्गले आहारत्ताते गिरहंति ते कि सब्वे श्राहारेंति नोसव्वे श्राहारेंति जहेव नेरइया तहेव 5 / पुरविकाइया णं भंते ! जे पोग्गले थाहारत्ताते गिरहंति ते णं तेसिं पुग्गला कीसत्ताए भुजो 2 परिणमंति ?, गोयमा ! फासिदियवेमायत्ताते भुजो 2 परिणमंति, एवं जाव वणप्फइकाइया 6 // सूत्रम् 305 // बेइंदिया णं भंते ! थाहारट्ठी ?, 45
SR No.004367
Book TitleAgam Sudha Sindhu Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendravijay Gani
PublisherHarshpushpamrut Jain Granthmala
Publication Year1976
Total Pages408
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy