________________ श्रीमत्प्रज्ञापनोपाङ्ग-सूत्रम् / / पदं 17-3 ) [ 256 तेउलेस्सा महड्डिया, सव्वप्पड्डिया एगेंदियतिरिक्खजोणिया कराहलेस्सा सव्वमहड्डिया तेउलेस्सा 4 / एवं पुढविकाइयाणवि, एवं एएणं अभिलावेणं जहेव लेस्सायो भावियायो तहेव नेयव्वं जाव चउरिदिया 5 | पंचेंदियतिरिक्खजोणियाणं तिरिक्खजोगिणीणं संमुच्छिमाणं गब्भवक्कंतियाण य सव्वेसिं भाणियव्वं जाव अप्पड्डिया वेमाणिया देवा तेउलेस्सा सव्वमहडिया वेमाणिया देवा सुक्कलेसा 6 / केई भणंति-चउवीसं दंडएणं इड्डी भाणियव्वा 7 // सूत्रं 221 // बीयो उद्देसयो समत्तो॥ . ___ // इति सप्तदशमे पदे द्वितोय उद्देशकः // 17-6 // // अथ श्री लेश्याख्य-सप्तदशम-पदे तृतीयोद्देशकः // नेरइए णं भंते ! नेरइएसु उववज्जइ अनेरइए नेरइएसु उववजइ ?, गोयमा !, नेरइए नेरइएसु उववजइ नो अनेरइए नेरइएसु उववजइ. एवं जाव वेमाणियाणं 1 / नेरइए णं भंते ! नेरइएहितो उववट्टइ अनेरइए नेरइएहितो उववट्टति ?, गोयमा !, अनेरइए नेरइएहितो उववट्टति गो नेरइए नेरइएहितो उववट्टइ, एवं जाव वैमाणिए, नवरं जोइसियवेमाणिएसु चयणंति अभिलावो कायब्बो 2 / से नूणं भंते ! कराहलेसे नेरइए कराहलेसेसु नेरइएसु उववजति कराहलेसे उववइ, जल्लेसे उववजइ तल्लेसे उववट्टइ ?, हंता गोयमा !, कराहलेसे नेरइए कराहलेसेसु नेरइएसु उववन्नति कराहलेसे उववट्टइ, जल्लेसे उववजइ तल्लेसे उववट्टइ, एवं नीललेस्सेवि, एवं काउलेस्सेवि 3 / एवं असुरकुमाराणवि जाव थणियकुमारा, नवरं लेस्सा अभहिया 4 / से नूणं भंते ! कराहलेसे पुढविकाइए कराहलेसेसु पुढविकाइएसु उववज्जति कराहलेसे उबट्टइ जल्लेसे उववजति तल्लेसे उववट्टति ?, हंता गोयमा ! कराहलेसे पुढविकाइए कराहलेसेसु पुढविकाइएसु उववज्जति, सिय कराहलेसे उववट्टइ सिय नीललेसे उववट्टइ सिय उववाद में उववइ, जल्ला असुरकुमाराणाहलेसे पुविकाइपजति तल्लेसे