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________________ श्रीओपपातिक-सूत्रम् ] पडिक्कता समाहिपत्ता कालमासे कालं किच्चा बंभलोए कप्पे देवत्ताए उववराणा, तहिं तेसिं गई दससागरोवमाई ठिई पराणत्ता, परलोगस्स थाराहगा, सेसं तं चेव 13, 2 // सू० 31 // बहुजणे णं भंते ! अराणमराणस्स एवमाइक्खइ एवं भासइ एवं परूवेइ एवं खलु अंबडे परिव्वायए कंपिल्लपुरे णयरे घरसते थाहारमाहरेइ, घरसए वसहि उवेइ, से कहमेयं भंते ! एवं ?, गोयमा !, जगणं से बहुजणो अराणमगणस्स एवमाइक्खइ जाव एवं परुवेइ-एवं खलु अम्मडे परिव्वायए कंपिल्लपुरे जाव घरसए वसहिं उवेइ, सच्चे णं एसम?, अहंपिणं गोयमा ! एवमाइक्खामि जाव एवं परूवेमि-एवं खलु अम्मडे परिवायए जाव वसहिं उवेइ 1 / से केण? णं भंते ! एवं * वुच्चइ-अम्मडे परिवायए जाव वसहि उवेइ ?, गोयमा !, अम्मडस्स णं परिव्वायगस्स पगइभद्दयाए जाव विणीययाए छटुंछ?णं अनिक्खित्तेणं तवोकम्मेणं उड्ढ बाहायो पगिझिय 2 सूराभिमुहस्स वातावणभूमीए अातावेमाणस्स सुभेणं परिणामेणं पसत्थेहिं अज्झवसाणेहिं पसत्थाहिं लेसाहिं विसुज्झमाणीहिं अन्नया कयाइ तदावरणिजाणं कम्माणं खयोवसमेणं ईहावूहामग्गणगवेसणं करेमाणस्स वीरियलद्धीए वेउब्वियलद्धीए योहिणाणलद्धी समुप्पण्णा, तए णं से श्रम्मडे परिव्वायए ताए वीरियलद्रीए वेउब्वियलद्धीए श्रोहिणाणलद्धीए समुप्पराणाए जणविम्हावणहउं कपिल्लपुरे णयरे घरसए जाव वसहिं उवेइ, से तेणटेणं गोयमा ! एवं वुचई-अम्मडे परिव्वायए कंपिल्लपुरे णयरे घरसए जाव वसहिं उवेइ 2 / पहू णं भंते ! अम्मडे परिवायए देवाणुप्पियाणं अंतिए मुंडे भवित्ता अगारायो यणगारियं पव्वइत्तए ?, णो इण? सम8, गोयमा ! अम्मडे णं परित्वायए समणोवासए अभिगयजीवाजीवे जाव अप्पा भावेमाणे विहरइ, णवरं ऊसियफलिहे अवंगुदुवारे चियत्तंतेउरघरदारपवेपी (चियत्तघरंतेउरपवेसी) एवं ण वुच्चइ अम्मडस्स णं परिवायगस्स
SR No.004366
Book TitleAgam Sudha Sindhu Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendravijay Gani
PublisherHarshpushpamrut Jain Granthmala
Publication Year1977
Total Pages456
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, agam_aupapatik, agam_rajprashniya, & agam_jivajivabhigam
File Size11 MB
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