________________ श्रीजीवाजीवाभिगम-सूत्रम् :: अ० 1 तृतीया प्रतिपत्तिः ) [ 363 तयो परिसायो पगणत्तायो अभितरपरिसाए देवाणं पणवीस सयं मज्झिमियाए परिसाए अड्डाइजा सया, बाहिरियाए परिसाए पंचसया अभितरियाए एकवीसं सागरोवमा सत्त य पलिग्रोवमाई मज्झिमियाए परिसाए एकवीससागरोवमाइं छप्पलियोवमाई बाहिरियाए परिसाए एकवीसं सागरोवमाइं पंच य पलिश्रोवमाई ठिती पराणत्ता 15 / कहि णं भंते ! हेट्ठिमंगेवेजगाणं देवाणं विमाणा पराणत्ता ? कहि णं भंते ! हेट्ठिमगेवेजगा देवा परिवसंति ? जहेव ठाणपए तहेव 16 / एवं मझिमगेवेजा उवरिमगेविजगा अणुत्तरा य जाव अहमिंदा नामं ते देवा पराणत्ता समणाउसो ! 17 // सू० 208 / / पढमो वेमाणियउद्देसयो॥ . // इति तृतीयप्रतिपत्तौ वैमानिकाधिकारे प्रथम उद्देशकः // 3-4-1 // // अथ तृतीयप्रतिपत्तौ वैमानिकाधिकारे द्वितीयोद्देशकः // - सोहम्मीसाणेसु कप्पेसु विमाणपुढवी किंपइट्ठिया पराणत्ता ?, गोयमा ! घणोदहिपइट्ठिया 1 / सणंकुमारमाहिंदेसु कप्पेसु विमाणपुढवी किंपइट्ठिया पराणत्ता ?, गोयमा ! घणवायपइट्ठिया पराणत्ता 2 / बंभलोए णं भंते ! कप्पे विमाणपुढवीणं पुच्छा, घणवायपइट्ठिया पराणत्ता 3 / लंतए णं भंते ! पुच्छा, गोयमा ! तदुभयपइट्ठिया 4 / महासुक्कसहस्सारेसुवि तदुभयपइट्ठिया 5 / पाणय जाव अच्चुएसु णं भंते ! कप्पेसु पुच्छा, श्रीवासंतरपइट्ठिया 6 / गेविजविमाणपुटवीमं पुच्छा, गोयमा ! श्रीवासंतरपइट्ठिया 7 / अणुत्तरोववाइयपुच्छा श्रीवासंतरपइट्ठिया 8 // सू० 201 // सोहम्मीसाणकप्पेसु विमाणपुढवी केवइयं बाहल्लेणं पराणता ?, गोयमा! सत्तावीसं जोयणसयाई बाहल्लेणं पराणत्ता, एवं पुच्छा, सणंकुमारमाहिंदेसु छब्बीसं जोयणसयाई 1 / बंभलंतए पंचवीसं 2 / महासुक्कसहस्सारेसु चउवीसं 3 / श्राणयपाणयारणाच्चुएसु तेवीसं सयाई 4 / गेविजविमाणपुढवी बावीसं 5 /