________________ 1, गोयमा ! चासदस्स जोतिसरमा महणवत्तियं // ससरसारखडि श्रीजीवाजीवाभिगम-सूत्रम् / अधिकारः 1 तृतीया प्रतिपत्तिः / [ 386 थायरक्खदेवाणं साहस्सीहि अन्नेहिं बहूहिं जोतिसिएहिं देवेहिं देवीहि य सद्धि संपुरिबुडे महयाहय णट्टगीइ-वाइय-तंती-तल-ताल-तुडिय-घणमुइंग-पडुप्पवाइयरवेणं दिवाई भोगभोगाइं भुजमाणे विहरित्तए, केवलं. परियारतुडिएण सद्धिं भोगभोगाई बुद्धीए नो चेव णं मेहुणवत्तियं // सू० 203 // सूरस्स णं भंते ! जोतिसिंदस्स जोतिसरनो कइ अग्गमहिसीनो पराणत्तायो ?, गोयमा ! चत्तारि अग्गमहिसीयो पराणत्तायो, तंजहा-सुरप्पभा श्रायवाभा अचिमाली पभंकरा, एवं अवसेसं जहा चंदस्स णवरिं सूरवडिंसए विमाणे सूरंसि सीहासणंसि, तहेव सव्वेसिपि गहाईणं चत्तारि अग्गमहिसीथो पराणत्तात्रो, * तंजहा-विजया. वेजयंती जयंती अपराजिया, तेसिपि तहेव // सू० 204 // चंदविमाणे णं भंते ! देवाणं केवतियं कालं ठिती परणता ?, एवं जहा ठितीपए तहा भाणियव्वा जाव ताराणं // सू० 205 // एतेसि णं भंते ! चंदिमसूरिय-गहणक्खत्त-ताराख्वाणं कयरे२हितो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा ?, गोयमा ! चंदिमसूरिया एते णं दोरिणवि तुल्ला सम्वत्थोवा संखेजगुणा णखत्ता संखेजगुणा गहा संखेजगुणाश्रो तारगायो॥ सू० 206 // जोइसुद्दे सश्रो समत्तो // // इति तृतीयप्रतिपत्तौ ज्योतिषधिकारे द्वितीय उद्देशकः // 3-3-2 // // अथ तृतीयप्रतिपत्तौ वैमानिकाधिकार प्रथमोद्देशकः // कहि णं भंते ! वेमाणियाणं देवाणं विमाणा पराणत्ता ?, कहि णं भंते ! वेमाणिया देवा परिवसंति ?, जहा गणपदे तहा सव्वं भाणियब्वं, णवरं परिसाश्रो भाणितब्वायो जाव सक्के, अन्नेसिं च बहूणं सोधम्मकप्पवासीणं देवाण य देवीण य जाव विहरंति // सू० 207 // सकस्स णं भंते ! देविंदस्स देवरन्नो कति परिसायो पन्नत्तायो ?, गोयमा !