________________ श्रीजीवाजीवाभिगम-सूत्रम् :: अ० 1 तृतीया प्रतिपत्तिः ] ( 351 वेदियंतातो कालोयसमुद्दपुरच्छिमेणं बारस जोयणसहस्साई श्रोगाहित्ता तहेव रायहाणीयो सगाणं दीवाणं पचत्थिमेणं अराणमि कालोयगसमुद्दे तहेव सव्वं 2 / एवं पुक्खरखरगाणं चंदाणं पुक्खवरस्स दीवस्स- पुरत्थिमिलायो वेदियंतायो पुक्खरसमुद्द बारस, जोयणसहस्साई * योगाहित्ता चंददीवा अराणमि पुक्खरखरे दीवे रायहाणीश्रो तहेव 3 / एवं सूराणवि दीवा पुक्खरवरदीवस्स पञ्चस्थिमिल्लायो वेदियंतायो पुक्खरोदं समुद्द बारस जोयणसहस्साई भोगाहित्ता तहेव सव्वं जाव रायहाणीयो दीविल्गाणं दीवे समुद्दगाणं समुद्दे चेव एगाण अभितरपासे एगाणं बाहिरपासे रायहाणीयो दीविल्लगाणं दीवेसु समुद्दगाणं समुद्दसु सरिणामतेसु 4 // सू० 165 // इमे णामा अणुगंतव्वा, जंबुद्दीवे लवणे धायइ कालोद पुक्खरे वरुणे / खीर घय इक्खु(वरो य)णंदी अरुणवरे कुंडले रुयगे // 1 // श्राभरणवत्थगंधे . उप्पलतिलते य पुढवि णिहिरयणे / वासहरदहनईश्रो विजया वक्खारकप्पिदा // 2 // पुरमंदरमावासा कूडा णक्खत्तवंदसूरा य, एवं भाणियव्वं // सू० 166 // कहि णं भंते ! देवहीवगाणं चंदाणं चंददीवा णामं दीवा पराणत्ता ?, गोयमा ! देवदीवस्स देवोदं समुद वारस जोयणसहस्साई भोगाहित्ता तेणेव कमेण पुरत्थिमिल्लायो वेइयंतागो जाव रायहाणीयो सगाणं दीवाणं पुरस्थिमेणं देवहीवं (देवोदं) समुह असंखेजाइं जोयणसहस्साई भोगाहित्ता एत्थ ण देवदीवयाणं चंदाणं चंदाश्रो णामं रायहाणीयो पराणत्तायो, सेसं तं चेव, देवदीवचंदा दीवा, एवं सूराणवि, णवरं पञ्चत्थिमिल्लायो वेदियंतायो पचत्थिमेणं च भाणितव्वा, तंमि चेव समुद्दे 1 / कहि णं भंते ! देवसमुद्दगाणं चंदाणं चंददीवा णामं दीवा पराणत्ता ?, गोयमा ! देवोदगस्स समुद्दगस्स पुरत्थिमिल्लायो वेदियंताबो देवोदगं समुद्द पचत्थिमेणं बारस जोयणसहस्साई तेणेव कमेणं जाव- रायहाणीयो सगाणं दीवाणं पञ्चत्थिमेणं देवोदगं