________________ श्रीजीव जीवाभिगम-सूत्रम् :: अ० 1 प्रतिपत्तिः 3 ] [ 273 तव्वं, णवरं सिहरिस्स वासहरपव्वयस्स विदिसास, एवं जाव सुद्धदंतदीवेत्ति जाव सेत्तं अंतरदीवका 11 // सू० 112 // से कि तं अकम्मभूमगमणुस्सा ?, 2 तीसविधा पराणत्ता, तंजहा-पंचहिं हेमवएहिं, एवं जहा पराणवणापदे जाव पंचहिं उत्तरकुरूहिं, सेत्तं अकम्मभूमगा 1 / से किं तं कम्मभूमगा ?, 2 पराणरसविधा पराणत्ता, तंजहा-पंचहिं भरहेहिं पंचहिं एरवरहिं पंचहिं महाविदेहेहिं, ते समासतो दुविहा पराणत्ता, तंजहा-बायरिया मिलेच्छा, एवं जहा पराणवणापदे जाव सेत्तं पायरिया, सेत्तं गब्भवक्कंतिया, सेत्तं मणुस्सा 2 // सू० 113 // // इति तृतीयप्रतिपत्तो मनुष्याधिकारे प्रथम उद्देशकः // 3-3-1 // // अथ तृतीय-प्रतिपत्तौ देवाधिकार प्रथमोद्देशकः // से किं तं देवा ?, देवा चउबिहा पराणत्ता, तंजहा-भवणवासी वाणमंतरा जोइसिया वेमाणिया // सू० 114 // से किं तं भवणवासी ?, 2 दसविहा पराणत्ता, तंज़हा-असुरकुमारा जहा पराणवणापदे, देवाणं भेश्रो तहा भाणितब्बो जाव अणुत्तरोववाइया पंचविधा पराणत्ता, तंजहाविजयवेजयंत जाव सव्वट्ठसिद्धगा, सेत्तं अणुत्तरोववातिया // सू० 115 // कहि णं भंते ! भवणवासिदेवाणं भवणा पन्नत्ता ?, कहि णं भंते ! भवणवासी देवा परिवसंति ?, गोयमा ! इमीसे रयाणप्पभाए पुढवीए असीउत्तर. जोयणसयसहस्सबाहल्लाए, एवं जहा पराणवणाए जाव भवणवासाइता, त(ए)स्थ णं भवणवासीणं देवाणं सत्त भवणकोडीयो बावत्तरि भवणावाससयसहस्सा भवंतित्तिमक्खाता, तत्थ णं बहवे भवणवासी देवा परिवसंतिअसुरा नाग सुवन्ना य जहा पराणवणाए जाव विहरंति // सू० 116 // कहि णं भंते ! असुरकुमाराणं देवाणं भवणा पन्नत्ता ?, पुच्छा, एवं जहा