________________ 352 ] [ श्रीमदागमसुधासिन्धुः / चतुर्थो विभाग अजा आयंबिलवड्डमाणं तवोकम्मं चोदसहिं वासेहिं तिहि य मासेहिं वीसहि य ग्रहोरत्तेहिं अहासुत्तं जाव सम्मं कारणं फासेति जाव बाराहेत्ता जेणेव अजचंदणा अजा तेणेव उवागच्छति वंदति नमंसति वंदित्ता नमंसित्ता बहूहिं चउत्थेहिं जाव भावेमाणी विहरति, तते णं सा महासेणकराहा अजा तेणं अोरालेणं जाव उवसोभेमाणी चिट्ठइ, तए णं तीसे महसेणकराहाए अजाए अनया कयाति पुवरत्तावरत्तकाले चिंता जहा खंदयस्स जाव अजचंदणं पुच्छइ जाव संलेहणा, कालं अणवकंखमाणी विहरति, तते णं सा महसेणकराहा अजा अजचंदणाए अजाए अंतिए सामाझ्याति एकारस अंगाई अहिजित्ता बहुपडिपुन्नातिं सत्तरस वासातिं परियायं पालइत्ता मासियाए संलेहणाए अप्पाणं झूसेत्ता सढि भत्ताई अणसणाए छेदेत्ता जस्सट्टाए कीरइ जाव तमटुं श्राराहेति चरिमउस्सासणीसासेहिं सिद्धा बुद्धा / अट्ट य वासा बादी एकोत्तरियाए जाव सत्तरस। एसो खलु परितारो सेणियभजाण णायव्वो // 1 // एवं खलु जंबू ! समणेणं भगवता महावीरेणं श्रादिगरेणं जाव संपत्तेणं अट्ठमस्स अंगस्स अंतगडदसाणं अयमट्ठ पत्नत्ते ति बेमि। अट्टमो वग्गो समत्तो 8 // अट्ठमं अंगं समत्तं // सू० 26 // अंतगडदसाणं अंगस्स एगो सुयखंधो अट्ठ वग्गा गट्ठसु चेव दिवसेसु उद्दिसिज्जंति, तत्थ पढमवितियवग्गे दस 2 उद्दे सगा, तईयवग्गे तेरस उद्दसगा, चउत्थपंचमवग्गे दस 2 उद्देसया, छट्टवग्गे सोलस उद्दे सगा, सत्तमवग्गे तेरस उद्देसगा, अट्ठमवग्गे दस उद्देसगा, सेसं जहा नायाधम्मकहाणं // सू० 27 // ___ // इति श्रीअन्तकृद्दशाङ्ग-सूत्रं समाप्तम् / (ग्रन्था 790) -::