________________ [289 श्रीमदुपासकदशाङ्ग-त्रम् // अध्ययनं 6 ] हिरराणकोडीयो छ निहाणपउत्तानो छ बुड्डिपउत्तानो छ पवित्थरपउत्तायो तायोऽवि य णं इच्छइ ममं सायो गिहायो नीणेता बालभीयाए नयरीए सिङ्घाडग जाब विपरित्तए तं सेयं खलु ममं एवं पुरिसं गिरिहत्तएत्तिकटु उद्धाइए जहा सुरादेवो तहेव भारिया पुच्छइ तहेव कहेइ 5, 3 // सू० 33 // __ सेसं जहा चुलणीपियस्स जाव सोहम्मे कप्पे अरुणसि? विमाणे उववन्ने, चत्तारि पलिग्रोवमाइं ठिई / सेसं तहेव जाव महाविदेहे वासे सिमिहिइ 5 // निक्लेवो // सू० 34 // इइ सत्तमस्स अङ्गस्स उवासग दसाणं पञ्चमं अज्झयणं समत्तं // * ॥इति पञ्चममध्ययनम् // 5 // // 6 // अथ कुण्डकोलिकाख्यं षष्ठमध्ययनम् // छट्ठस्स उक्खेवश्रो-एवं खलु जम्बू ! ते णं काले णं ते णं समए णं कम्पिल्लपुरे नयरे सहसम्बवणे उजाणे पुढवीसिलापट्टए चेइए जियसत्तू राया कुण्डकोलिए गाहावई पूसा भारिया छ हिरराणकोडीयो निहाणपउत्तायो छ बुड्डिपउत्ताश्रो छ पवित्थरपउत्तानो छ वया दसगोसाहस्सिएणं वएणं / सामी समोसढे, जहा कामदेवो तहा सावयधर्म पडिवजइ / सव्वेव वत्तव्वया जाव पडिलाभेमाणे विहरइ // सू० 35 // . ___तए णं से कुण्डकोलिए समणोवासए अन्नया कयाइ पुब्वावरराहकालसमयंसि जेणेव असोगवणिया जेणेव पुढविसिलापट्टए तेणेव उवागच्छइ 2 नाममुद्दगं च उत्तरजिगं च पुढविसिलापट्टए ठवेइ 2 समणस्स भगवश्रो महावीरस्स अन्तियं धम्मपरणत्ति उवसम्पजित्ता णं विहरइ 1 / तए णं तस्स कुण्डकोलियस्स समणोवासयस्स एगे देवे अन्तियं पाउभवित्था, तए णं से देवे नाममुद्द व उत्तरिज्जं च पुढविसिलापट्टयायो गेराहइ 2