________________ श्रीज्ञाताधर्मकथाङ्ग-सूत्रम् : श्रु० 2 : वर्गः 10 ] [254 धम्मा माया, सव्वात्रोऽवि पासस्स अरहयो अंतिए पव्वइयायो पुष्फचूलाए अजाए सिस्सिणीयत्ताए ईसाणस्स अग्गमहिसीनो ठिती णव पलिश्रोवमाई महाविदेहे वासे सिज्झिहिंति बुझिहिंति मुचिहिंति सव्वदुक्खाणं अंतं काहिति 4 / एवं खलु जंबू ! णिक्खेवो दसमवग्गस्स 5 ॥सूत्रं 164 // दसमो वग्गो समत्तो॥ // इति दशमो वर्गः // 2-10 // एवं खलुं जंबू ! समणेणं भगवया महावीरेणं श्रादिगरेणं तित्थगरेणं सयंसंबुद्धणं पुरिसोत्तमेणं जाव संपत्तेणं छठुस्स अगस्स दोचस्स णं सुयक्खंधस्स णायसुयाणं श्रयम? पन्नते / धम्मकहा सुयक्खंधो समत्तो दसहि वग्गेहिं नायाधम्मकहाश्रो समत्तायो॥ सूत्र 165 // // इति द्वितीयः श्रुतस्कन्धः समाप्तः // 2 // // इति श्री ज्ञाताधर्मकथाङ्ग-सूत्रम् // 6 // (ग्रन्थाग्रं 5464)