________________ 638 ] ... [ श्रीमदागमसुधासिन्धुः / तृतीयो विभागः तित्थे अणुसजिस्सति ?, गोयमा ! जंबुद्दीवे 2 भारहे वासे इमीसे श्रोसप्पिणीए ममं एगवीसं वाससहस्साई तित्थे अणुसज्जिस्सति // सूत्रं 676 // जहा णं भंते ! जंबुद्दीवे 2 भारहे बासे इमीसे श्रोसप्पिणीए देवाणुप्पियाणं एकवीसं वाससहस्साई तित्थं अणुसजिस्सति तहा णं भंते ! जंबुद्दीवे 2 भारहे वासे आगमेस्साणं चरिमतित्थगरस्स केवतियं कालं तित्थे अणुसजिस्सति ?, गोयमा ! जावतिए णं उसभस्स अरहो कोसलियस्स जिणपरियाए एवइयाई संखेजाइं श्रागमेस्साणं चरिमतित्थगरस्स तित्थे अणुसजिस्सति // सूत्रं 680 // तित्थं भंते ! तित्थं तित्थगरे तित्थं ?, गोयमा ! अरहा ताव नियमं तित्थकरे, तित्थं पुण चाउवन्नाइन्ने समणसंघो(घे) तंजहा-समणा समणीयो सावया सावियायो // सूत्रं 681 // पवयणं भंते ! पवयणं पावयणी पवयणं ?, गोयमा ! परहा ताव नियमं पावयणी, पवयणं पुण दुवालसंगे गणिपिडगे, तंजहा-पायारो जाव दिट्टिवायो 1 / जे इमे भंते ! उग्गा भोगा राइना इक्खागा नाया कोरवा एए णं अस्सि धम्मे श्रोगाहंति 2 अट्टविहं कम्मरयमलं पवाहेति -पवाहित्ता तो पच्छा सिझति जाव अंतं करेंति ?, हंता गोयमा ! जे इमे उग्गा भोगा तं चेव जाव अंतं करेंति, अत्थेगइया अन्नयरेसु देवलोएसु देवत्ताए उबवत्तारो भवंति 2 / कइविहा णं भंते ! देवलोया पन्नत्ता ?, गोयमा ! चउबिहा देवलोया पन्नत्ता, तंजहा-भवणवासी वाणमंतरा जोतिसिया वेमाणिया 3 / सेवं भंते 2 त्ति जाव विहरति 4 // सूत्रं 682 // // इति विंशतितमशतके अष्टम उद्देशकः // 20-8 // // अथ विंशतितमशतके चारणाख्य-नवमोद्देशकः // . कइविहा णं भंते ! चारणा पत्नत्ता ?, गोयमा ! दुविहा चारणा पन्नत्ता, तंजहा-विजाचारणा य जंघाचारणा य 1 / से केण?णं भंते !