________________ 616] [ श्रीमदागमसुधासिन्धु :: तृतीयो विभागः ॥अथ एकोनविंशतितमशतके वाणव्यन्तराख्य-दशमोद्देशकः॥ वाणमंतराणं भंते ! सव्वे समाहारा, एवं जहा सोलसमसए दीव. कुमारुद्द सो जाव अप्पड्डियत्ति 1 / सेवं भंते 2 त्ति जाव विहरति 2 // सूत्रं 661 // 11-10 // एकूणवीसतिमं सयं समत्तं // // इति एकोनविंशतिमं शतकम् // 19 // ॥अथ विंशतितमशतके द्वीन्द्रियाख्य-प्रथमोद्देशकः॥ बेइंदिय 1 मागासे 2 पाणवहे 3 उवचए 4 य परमाणू 5 / अंतर 6 बंधे 7 भूमी 8 चारण 1 सोवकमा 10 जीवा // 1 // रायगिहे जाव एवं क्यासी-सिय भंते ! जाव चत्तारि पंच बेंदिया एगययो साहारणसरीरं बंधति 2 तो पच्छा श्राहारेंति वा परिणामेति वा सरीरं वा बंधति ?, णो तिण? सम?, बेदिया णं पत्तेयाहारा पत्तेयपरिणामा पत्तेयसरीरं बंधति 2 तो पच्छा श्राहारेंति वा परिणामेति वा सरीरं वा बंधति 1 / तेसि णं भंते ! जीवाणं कति लेस्सागो पन्नत्तायो ?, गोयमा ! तो लेस्सा पन्नत्ता, तंजहा-कराहलेस्सा नीललेस्सा काउलेस्सा 2 / एवं जहा एगूणवीसतिमे सए तेऊकाइयाणं जाव उव्वटुंति, नवरं सम्मदिट्ठीवि मिच्छादिट्ठीवि नो सम्मामिच्छदिट्ठीवि, दो नाणा दो अन्नाणा नियम, नो मणजोगी वयजोगीवि कायजोगीवि, श्राहारो नियम छदिसि 3 / तेसि णं भंते ! जीवाणं एवं सन्नाति वा पन्नाति वा मणेति वा वइति वा अम्हे णं इट्टाणि? रसे इटाणिठे फासे पडिसंवेदेमो ?, णो तिणढे सम8, पडिसंवेदेति पुण ते, ठिती जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं उक्कोसेणं बारस संवच्छराई, सेसं तं चेव 4 / एवं तेइंदियावि, एवं चउरिदियावि, नाणत्तं इंदिएसु ठितीए य सेसं तं चेव ठिती जहा पन्नवणाए 5 / सियभंते ! जाव चत्तारि पंच पंचिंदिया