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________________ श्रीमद्व्याख्याप्रज्ञप्ति (श्रीमद्भगवति) सूत्रं :: शतकं 18 :: उद्देशकः 2 ] ( 576 य समणुगम्ममाणमग्गा सव्वड्डीए जाव रवेणं अकालपरिहीणं चेव कत्तियस्स सेट्ठीस्स अंतियं पाउभवंति 12 / तए णं से कत्तिए सेट्ठी विपुलं असणं 4 जहा गंगदत्तो जाव मित्ताणाति जाव परिजणेणं जेटुपुत्तेणं णेगमट्ठसहस्सेण य समणुगम्ममाणमग्गे सबडिए जाव रखेणं हथिणापुर नगरं मज्झमज्झेणं जहा गंगदत्तो जाव प्रालित्ते णं भंते ! लोए पलित्ते णं भंते ! लोए ग्रालित्तपलित्ते णं भंते ! लोए जाव अणुगामियत्ताए भविस्सति तं इच्छामि णं भंते ! णेगमट्ठसहस्सेण सद्धिं सयमेव पव्वावियं जाव धम्ममाइक्खियं 13 / तए णं मुणिसुव्वए अरहा कत्तियं सेढि णेगमट्ठसहस्सेणं सद्धिं सयमेव पव्वावेति जाव धम्ममाइक्खइ, एवं देवाणुप्पिया! गंतव्वं एवं चिट्ठियव्वं जाव संजमियव्वं, तए णं से कत्तिए सेट्ठी नेगमट्ठसहस्सेण सद्धिं मुणिसुव्वयस्स यरहयो इमं एयारूवं धम्मियं उवदेसं सम्म पडिवजइ तमाणाए तहा गच्छति जाव संजमेति 14 / तए णं से कत्तिए सेट्ठी णेगमट्ठसहस्सेणं सद्धिं अणगारे जाए ईरियासमिए जाव गुत्तवंभयारी 15 / तए णं से कत्तिए श्रणगारे मुणिसुव्वयस्स थरहयो तहारूवाणं थेराणं अंतिए सामाइयमाइयाई चोद्दस पुव्वाइं अहिज्जइ 2 बहूहिं चउत्थछट्टट्ठम जाव अप्पाणं भावेमाणे बहुपडिपुन्नाई दुवालवासाई सामनपरियागं पाउणइ 2 मासियाए संलेहणाए अत्ताणं झोसेई 2 सढि भत्ताई अणसणाए छेदेति 2 बालोइय जाव कालं किचा सोहम्मे कप्पे सोहम्मवडेंसए विमाणे उखावायसभाए देवसयणिज्जसि जावसक्के देविंदत्ताए उववन्ने तए णं से सक्के देविंदे देवराया अहुणोववरणे 16 / सेसं जहा गंगदत्तस्स जाव अंत काहिति, नवरं ठिती दो सागरोवमाई सेसं तं चेव 17 / सेवं भंते ! 2 ति जाव विहरति 18 // सूत्रं 6 17 // // इति अष्टादशमशतके द्वितीय उद्देशकः // 18-2 / /
SR No.004364
Book TitleAgam Sudha Sindhu Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendravijay Gani
PublisherHarshpushpamrut Jain Granthmala
Publication Year1977
Total Pages418
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
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