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________________ 4] संपादकीय निवेदन पर्वक अधिकारी छे. श्रावक श्राविकाओ उपधान वहन करवा पूर्वक श्री आवश्यक सूत्र उपरांत दशवकालिकसूत्रना षड्जीव-निकाय-नामना चोथा अध्ययन पर्यंतना श्रुतना अधिकारी छे. आम आगमश्रुतना अधिकारी मुनिवरो योगवहन करवा पूर्वक योग्यता मुजब अध्ययन आदि करीने पोताना ज्ञान दर्शन चारित्रने निर्मल बनावे के अने योग्यता मुजब धर्मकथा द्वारा जिणवाणीनु पान करावी साधु-साध्वी श्रावक-श्राविका रूप चारे प्रकारना संघने तेमज मार्गाभिमुख जीवोने मुक्तिमार्ग प्रदान करे छे. 45 आगमसूत्रो 6 विभागोमां वहेंचायेल छे. (1) अंगसूत्रो-११ (2) उपांगसूत्रो-१२ (3) पयन्नासूत्रो-१० (4) छेदसूत्रो-६ (5) मूल सूत्रो-४ (6) चूलिकासूत्रो-२. आ सूत्रोनु स्वाध्याय आदि अध्ययन वधे ते माटे उपयोगी बने ते रीते 45 मूल सूत्रो श्वेताम्बर मूर्तिपूजक श्रीसंघमा सळंग मुद्रित नथी अने जेथी आगम सूत्रोना स्वाध्याय आदिनी अनुकूलता थाय ते माटे शक्य प्रयत्ने संशोधन करीने प्रगट करवानी योजना विचारवामां आवी छे, ते योजना मुजब 45 आगमसूत्रो 14 विभागमा संपादन थशे. ____ पहेलो, चोथो, आठमो, बारमो, तेरमो, चौदमो विभाग प्रगट थया पछी आ बीजो विभाग संपादित थयेल छे. आ विभागमा श्री व्याख्याप्रज्ञप्ति अपरनाम श्री भगवतीसूत्रना 12 शतक सुधी पूर्वार्ध आपवामां आवेल छे. श्रीभगवतीसूत्रनी रचना गणधरदेव श्रीमत्सुधर्मस्वामी भगवाने करी छे. आ श्री भगवतीसूत्रना संपादनमा बाबुश्री धनपतसिंहजी प्रकाशित सटीक भगवतीसूत्र, पूज्य आगमोद्धारक आचार्यदेवश्रीसागरानंदसूरीश्वरजी महाराज संशोधित श्री आगममंजूषा, श्री आगमोदयसमिति प्रकाशित पूज्य आचार्यदेव श्री अभयदेवसूरीश्वरजी महाराज विरचित टीका सहितनु श्रीभगवतीसूत्र, श्री ऋषभदेवजी केशरीमलजी पेढी प्रकाशित सटीक श्री भगवती सूत्र, तेमज पूज्य आचार्यश्री दानशेखरसूरीश्वर विरचित टीका तेमज पं. हीरालाल हंसराज प्रकाशित श्री भगवतीसूत्र, श्रीमहावीरविद्यालय प्रकाशित श्रीभगवतीसूत्र प्रथम भाग विगेरे प्राप्त प्रकाशनोनो उपयोग कयों छे. ते सौ प्रत्ये कृतज्ञता प्रगट करूं छु. . टीकाओ आदिमा रहेला पाठांतरो मेलवीने मूलपाठ जोडे कौंशमा आपेला छे. श्री श्रमण संघमा आगमो कंठस्थ करवामां, स्वाध्याय करवामां, विस्तृत टीकाओना वांचन पछी मूलसूत्रोनु पुनरावर्तन करवामां, आ मूल सूत्रोना संयुक्त संपादन थी घणी अनुकूलता रहेशे. अने अथी उत्साही मुनि भगवंतो होंशे होंशे सूत्रो कंठस्थ करीने आगम श्रुतने धारण करवा माटे पण समर्थ बनी शकशे. 2, 5, के 10, 20 सूत्र कंठस्थ करनाराण
SR No.004363
Book TitleAgam Sudha Sindhu Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendravijay Gani
PublisherHarshpushpamrut Jain Granthmala
Publication Year1976
Total Pages468
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size11 MB
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