________________ 380 ] ....... [ श्रीमदागगसुधासिन्धुः :: द्वितीया विभागः जाव अहमत्थिकायस्स पएसा नो अागासत्थिकाये श्रागासत्थिकायस्स देसे श्रागासस्थिकायपएसा अद्धासमए सेसं तं चेव 13 / अलोए णं भंते ! किं जीवा जीवदेसा जीवपएसा ? एवं जहा अस्थिकायउद्देसए अलोयागासे तहेव निरवसेसं जाव अणंतभागूणे 14 / अहेलोगखेत्तलोगस्स णं भंते ! एगंमि श्रागासपएसे किं जीवा जीवदेसा जीवप्पएसा अजीवा अजीवदेसा अजीवपएसा ?, गोयमा ! नो जीवा जीवदेसावि जीवपएसावि अजीवावि अजीवदेसावि अजीवपएसावि, जे जीवदेसा ते नियमा एगिदियदेसा 1 श्रवा एगिदियदेसा य बेइंदियस्स देसे 2 अहवा. एगिदियदेसा य बेइंदियाण य देसा 3 एवं मस्मिल्लविरहियो जाव अणिदिएसु जाव श्रवा एगिदियदेसा य अणिदियदेसा य, जे जीवपएसा ते नियमा एगिदियपएसा 1 अहवा एगिदियपएसा य बंदियस्स पएसा 2 श्रहवा एगिदियपएसा य बेइंदियाण य पएसा 3 एवं थाइलविरहियो जाव पंचिदिएसु श्रणिदिएसु तियभंगो, जे अजीवा ते दुविहा पन्नत्ता, तंजहा-स्वी अजीवा य अरूवी जीवा य. ख्वी तहेव, जे अस्वी जीवा ते पंचविहा पराण त्ता, तंजहा-नो धम्मस्थिकाए धम्मत्थिकायस्स देसे 1 धम्मत्थिकायस्स परसे 2 एवं अहम्मत्थिकायस्सवि 4 श्रद्धासमए 5, 15 / तिरियलोगखेलोगरस णं भंते ! एगंमि श्रागासपएसे किं जीवा जाव अजीवपएसा ?, एवं जहा अहोलोगखेत्तलोगस्स तहेव, एवं उडलोगखेत्तलोगरसवि, नवरं श्रद्धासमश्रो नत्थि, अस्वी चउब्विहा 16 / लोगस्स जहा अहेलोगखेत्तलोगरस एगंमि श्रागासपएसे 17 / अलोगस्स णं भंते ! एगंमि श्रागासपएसे पुच्छा, गोयमा! नो जीवा नो जीवदेसा तं चेव जाव अणंतेहिं श्रगुरुयलहुयगुणेहिं संजुत्ते सव्वागासस्स अणंतभागणे 18 / दव्यश्रो णं अहेलोगखेत्तलोए अणंताई जीवदब्वाइं अणंताई अजीवदन्वाइं अणंता जीवाजीवदव्वा एवं तिरियलोयखेत्तलोएवि, एवं उद्दलोयखेत्तलोएवि, दव्वश्रो णं अलोए