________________ [ श्रीमदागेमसुधासिन्धुः द्वितीयो विमागर अचिविमाणे परिवसंति 4 / कहि णं भंते ! श्रादिच्चा देवा परिवसंति ?, गोयमा ! अचिमालिविमाणे परिवसंति 5 / एवं नेयव्वं जहाणुपुब्बीए जाव कहि णं भंते ! रिट्ठा देवा परिखसंति , गोयमा ! रिटुविमाणे 6 / सारस्सयमाइचाणं भंते ! देवाणं कति देवा कति देवसया पगणता ?, गोयमा ! सत्त देवा सत्त देवसया परिवारो पराणत्तो, वराहीवरुणाणं देवाणं चउद्दस देवा चउद्दस देवसहस्सा परिवारो पराणत्तो, गइतोयतुसियाणं देवाणं सत्त देवा सत्त देवसहस्सा पराणत्ता, श्रवसेसाणं नव देवा नव देवसया परणत्ता-पढमजुगलम्मि सत्त उ सयाणि बीयमि चोदससहस्सा / तइए सत्तसहस्सा नव चेव सयाणि सेसेसु // 1 // ' लोगंतिगविमाणा णं भंते ! किंपतिट्टिया पराणत्ता ?, गोयमा ! वाउपइट्ठिया (तदुभयपतिट्ठिया) पराणत्ता, एवं नेयव्वं 7 / विमाणाणं पतिट्ठाणं बाहल्लुच्चत्तमेव संगणं / ' बंभलोयवत्तव्वया नेयवा [जहा जीवाभिगमे देवुद्देसए ] जाव हंता गोयमा ! असतिं अदुवा अणंतखुत्तो। नो चेव णं देवित्ताए 8 / लोगंतियविमाणेसु णं भंते ! केवतियं कालं ठिती पराणत्ता ?, गोयमा ! अट्ट सागरोवमाई ठिती पराणत्ता 1 / लोगंतियविमाणेहिंतो णं भंते ! केवतियं अबाहाए लोगंते पण्णत्ते ?, गोयमा ! असंखेजाई जोयणसहस्साई अबाहाए लोगंते पण्णत्ते 10 / सेवं भंते ! सेवं भंते ! ति जाव विहरति 11 // सूत्रं 243 // // इति षष्ठशतके पश्चम उद्देशकः // 6-6 // // अथ षष्ठशतके भव्याख्य-पष्ठोद्देशकः // कति णं भंते ! पुढवीबो पराणत्तायो ?, गोयमा ! सत्त पुढवीयो पराणत्तायो, तंजहा-रयणप्पभा जाव तमतमा, रयणप्पभादीणं यावासा भाणियन्वा जाव अहेसत्तमाए, एवं जे जत्तिया श्रावासा ते भाणियव्वा