________________ 116 ] [ श्रीमदागेमसुभासिन्धुः में द्वितीयो विभागा विसमं करेत्तए विसमं वा समं करेत्तए ?, गोयमा ! णो इण? सम8, एवं चेव दितियोऽवि घालावगो णवरं परियातित्ता पभू 3 / से भते ! किं माई विकुब्वति अमाई विकुब्वइ ? गोयमा ! माई विकुब्वइ नो अमाई विकुब्वति 4 / से केण?णं भंते ! एवं वुच्चइ जाव नो अमाई विकुम्वइ ?, गोयमा ! माईपणियं पागाभोयणं भोचा 2 वामेति तस्स णं तेणं पणीएणं पाणभोय. णेणं अट्ठि अट्टिमिजा वहलीभवंति पयणुए मंससोणिए भवति, जेवि य से अहाबायरा पोग्गला तेवि य से परिणमंति, तंजहा-सोतिदियत्ताए, जाव फासिंदियत्ताए पट्टि-ट्टिमिंजकेस-मंसुरोम-नहत्ताए सुक्कत्ताए सोणियत्ताए, अमाईणं लूहं पागभोरणं भोचा 2 णो वामेइ, तस्स णं तेणं लूहेणं पाणभोयणेणं अट्टि-ट्टिमिजा-केसमंसुरोम-नहत्ताए पयणु भाति बहले मंससोणिए, जेवि य से ग्रहाबादरा पोग्गला तेवि य से परिणमंति, तंजहा-उच्चारत्ताए पासवणताए जाव सोणियत्ताए, से तेणटेणं जाव नो अमाई विकुब्बइ 5 / माईणं तस्स ठाणस्स अणालोइयपडिवकते कालं करेइ नत्थि तस्स श्राराहणा 6 / अमाई गां तस्स गणस्स आलोइयपडिक्कते कालं करेइ अत्थि तस्स पाराहणा 7 / सेवं भंते ! सेवं भंते ! ति जाव विहरति 8 / // सूत्रं 160 // तईयसए चउत्थो उद्दे सो समत्तो // ॥इति तृतीयशतके चतुर्थ उद्देशकः // 3-4 // // अथ तृतीयशतके स्त्रीविकुर्वणाख्य-पञ्चमोद्देशकः // . अणगारे णं भंते ! भावियप्पा बाहिरए पोग्गले अपरियाइत्ता पभू एगं महं इत्थिरूवं वा जाव संदमाणियरूवं वा विउवित्तए ? णो तिण? समढे 1 / अणगारे णं भंते ! भावियपा बाहिरए पोग्गले परियाइत्ता पभू एगं महं इथिरुवं वा जाव संदमाणियरूवं वा विउवित्तए ?, हंता पभू 2 / अणगारे णं भंते ! भावियप्पा केवतियाई पभू इत्थिरूवाई विकुवित्तए ?,