________________ 428 ] [ श्रीमदागमसुधासिन्धुः : प्रथमो विभागा णस्स अइमायमाहारए सया भवइ, पुव्वरयं पुव्वकीलियं सरित्ता भवइ, सहाणुवाई रुवाणुवाई सिलोगाणुवाई जाव सायासुक्खपडिबद्धे यावि भवति // सू० 663 // अभिणंदणाणो णं अरहयो सुमती अरहा नवहिं सागरोवमकोडीसयसहस्सेहिं विइक्कतेहिं समुष्पन्ने / सू० 664 // नव सब्भावपयत्था पन्नत्ता, तंजहा-जीवा अजीवा पुराणं पावो पासवो संवरो निजरा बंधो मोक्खो // सू० 665 // णवविहा संसारसमावनगा जीवा पन्नत्ता, तंजहा-पुढविकाइया जाव वणस्सइकाइया बेइंदिया जाव पंचिंदितत्ति 1 / पुढविकाइया नवगइया नवयागतिता पन्नत्ता, तंजहां-पुढवीकाइए पुढवि. काइएसु उववजमाणे पुढविकाइएहिंतो वा जाव पंचिंदियेहितो वा उववज्जेजा, से चेव णं से पुढविकाइए पुढविकायत्तं विप्पजहमाणे पुढविकाइयत्ताए जाव पंचिदियत्ताते वा गच्छेज्जा 2 एवमाउकाइयावि 3 जाव पंचिंदियत्ति 2 / णवविधा सव्वजीवा पन्नत्ता, तंजहा-एगिदिया बेइंदिया तेइंदिया चरिंदिया नेरतिता पंचेंदियतिरिक्खजोणिया मणुस्सा देवा सिद्धा 3 / अथवा णवविहा सव्वजीवा पनत्ता, तंजहा-पढमसमयनेरतिता अपढमसमयनेरतिता जाव अपदमसमयदेवा सिद्धा 4 / नवविहा सव्वजीवोगाहणा पत्नत्ता, तंजहा-पुढविकाइयोगाहणा अाउकाइयो. गाहणा जाव वणस्सइकायउगाहणा बेइंदियश्रोगाहणा तेइंदिययोगाहणा चरिंदियोगाहणा पंचिंदिययोगाहणा 5 / जीवाणं नवहिं ठाणेहिं संसारं वत्तिंसु वा वत्तंति वा वत्तिस्संति वा, तंजहा-पुढविकाइयत्ताए जाव पंचिंदियताए 6 // सू० 666 // णवहिं ठाणेहिं रोगुप्पत्ती सिया तंजहा-अचा. सणाते अहितासणाते अतिणिदाए अतिजागरितेण उच्चारनिरोहेणं पासवणनिरोहेणं श्रद्धाणगमणेणं भोयणपडिकूलताते इंदियत्थविकोवणयाते / / सू० 667 // गावविधे दरिसणावरणिज्जे कम्मे पन्नत्ते, तंजहा-निद्दा निहानिद्दा पयला पयलापयला थीणगिद्धी चक्खुदंसणावरणे अचवखुदंस