________________ 426 ] [ श्रीमदागमसुधासिन्धुः / प्रथमो विभागः सुक्कसहस्सारेसु णं कप्पेसु विमाणा अट्ट,जोयणसताई उड्ढं उच्चत्तेणं पन्नत्ता H सू० 650 // अरहतो'णं रिट्टनेमिस्स अट्टसया वादीणं सदेवमणुयासुरांते. परिसाते वादे अपराजिताणं उकोसियां वादिसंपया हुत्या // सू० 651 // अट्ठसमतिएं केवलीसमुग्घाते पत्नत्ते, तंजहा-पढमें समएं दंड करेति, बीए समए कवाडं करेति, ततिए समते. मंथानं करेति, चउत्थे समते लोग पूरेति, पंचमे समए लोगं पड़िसाहरति, छठे समए मंथं पडिंसाहरति, सत्तमे समए कवाडं पृडिसाहरति, अट्ठमे समए दंडं पडिसाहरति // सू० 652 // समणस्स णं भगवतो महावीरस्स अट्ठ सया अणुत्तरोववातियाणं गतिकल्लाणाणं जाव श्रागमेसिभदाणं उक्कोसिता अणुत्तरोववातितसंपया हुत्था॥ सू० 653 // अट्ठविधा वाणमंतरा देवा पन्नत्ता तंजहा-पिसाया भूता जक्खा रवखसा किन्नरा किंपुरिसा महोरंगा गंधव्वा / एतेसि णं अट्टराह(विहाणं) वाणमंतरदेवाणं अट्ठ चेतितरुक्खा पन्नत्ता, तंजहा-कलंबो अ पिसायाणं, वडो जक्खाण घेतितं / तुलसी भूयाणं भवे, खखसाणं च कंडो॥१॥ असोयो किन्नराणं च, किंपुरिसाण यं चंपतों / नागरुक्खो भुयंगाणं, गंधवाण य तेंदुओ // 2 // 2 // सू० 654 // इमीसे रयणप्पभाते पुढवीते बहुसमरमणिज्जायो भूमिभागायो अट्ठजोयणसते उडवाहाने सूरविमाणे चारं चरति ॥सू० 655 / / अट्ठ नवखत्ता चंदेणं सद्धिं पमदं जोगं जोति, तंजहा-कत्तिता रोहिणी पुराणव्वसू महा चित्ता विस्साहा अणुराधा जेट्टा // सू० 656 // जंबुद्दीवस्स णं दीवम्स दारा अट्ठजोयणाई उड्ढ़ उच्चत्तेणं पन्नत्ता 1 / सव्वेसिपि दीवसमुदाणं दारा अट्ठजोयणाई उड्ढं उच्चत्तेणं पन्नत्ता 2 // सू० 657 // पुरिसवेयणिज्जरस णं कम्मस्स जहन्नेणं अट्ठसंवच्छराई बंधठिती पन्नत्ता 1 / जसोकित्तीनामएणं कम्मस्स जहराणेणं अट्ठ मुहुत्ताई बंधठिती पन्नत्ता 2 / उच्चगोयस्स णं कम्मस्स एवं चेव 3 ॥सू. 658 // तेइंदियाणमट्ठ जातीकुलकोडीजोणीपमुहसत सहस्सा पन्नत्ता // सू०