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________________ भीमत्स्थानाङ्गसूत्रम् / अध्ययनं 8 ] [ 416 जाव फासामातो सोक्खातो ववरोवेत्ता भवति // सू० 614 // अट्ठ सुहुमा पन्नत्ता, तंजहा-पाणसुहमे पणगसुहुमे बीयसुहुमे हरितसुहुमे पुप्फसुहुने अंडसुहुमे लेणसुहुमे सिणेहसुहुमे // सू० 615 // भरहस्स णं रन्नो चाउरंतचकवट्टिस्स अट्ठ पुरिसजुगाइं अणुबद्धं सिद्धाइं जाप सवदुक्खप्पही. णाई, तंजहा-श्रादिच्चजसे महाजसे अतिबले महाबले तेतवीरिते कित्तवीरिते दंडवीरिते जलवीरिते // सू० 616 // पासस्स णं श्ररहयो पुरिसादाणितस्स अट्ठ गणा श्रट्ट गणहरा होत्था, तंजहा-सुभे अजघोसे वसिठेबंभचारी सोमे सिरिधरिते वीरिते भद्दजसे // सू० 617 // अविधे दंसणे पन्नत्ते, तंजहा-सम्मदसणे मिच्छदंसणे सम्मामिच्छदंसणे चक्खुदंसणे जाव केवलदसणे सुविणदंसणे // सू० 618 // अट्ठविधे श्रद्धोवमिते पन्नत्ते, तंजहा-पलितोवमे सागरोवमे उस्सप्पिणी श्रोसप्पिणी पोग्गलपरियट्टे तीतद्धा अणागतद्धा सव्वद्धा // सू० 611 // श्ररहतो णं अरिट्टनेमिस्स जाव अट्ठमातो पुरिसजुगातो जुगंतकरभूमी दुवासपरियाते अंतमक्कासी // सू० 620 // समणेणं भगवता महावीरेणं अट्ठ रायाणो मुडे भवेत्ता अगारातो यणगारितं पब्वाविता, तंजहा-वीरंगय वीरजसे संजयएणिजते य रायरिसी / सेयसिवे उदायणे तह संखे कासितवद्धणए ॥सू० 621 // अट्टविहे श्राहारे पन्नत्ते, तंजहा-मणुराणे असणे पाणे साइमे साइमे श्रमणुगणे जाव साइमे // सू. 622 // उपि सणंकुमारमाहिंदाणं कप्पाणं हेटिं बंभलोगे कप्पे रिट्ठविमाणे पत्थडे एत्थ णमक्खाडगसमचउरंससंठाणसंठितातो अट्ट कराहरातीतो पन्नत्तायो, तंजहा-पुरच्छिमेणं दो कराहरातीतो दाहिणेणं दो कराहराइयो पञ्चच्छिमेणं दो कराहराइयो उत्तरेणं दो कराहराइयो, पुरच्छिमा अभंतरा कराहराती दाहिणं बाहिरं कराहराइं पुट्ठा, दाहिणा अभंतरा कराहराती पञ्चच्छिमगं बाहिरं कगहराई पुट्ठा, पच्चच्छिमा अभंतरा कराहराती उत्तरं बाहिरं कराहराई पुटा, उत्तरा अभंतरा
SR No.004362
Book TitleAgam Sudha Sindhu Part 03 of 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendravijay Gani
PublisherHarshpushpamrut Jain Granthmala
Publication Year1975
Total Pages210
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sthanang
File Size22 MB
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