________________ 398] [ श्रीमदागमसुधासिन्धुः : प्रथमो विभागः भाषणामनिहत्ताउते 1 / नेरतियाणं छविहे ग्राउयबंधे पन्नत्ते, तंजहाजातिणामनिहत्ताउते जाव अणुभावनामणिहत्ताउए एवं जाव वेमाणियाणं 2 / नेरइया णियमा छम्मासावसेसाउता परभवियाउयं पगरेंति, एवामेव असुरकुमारावि जाव थणियकुमारा, असंखेजवासाउता सन्निपंचिंदियतिरिक्खजोणिया णियम छम्मासावसेसाउया परभवियाउयं पगरेंति, असंखेजवासाउया सन्निमणुस्सा नियम जाव पगरिति, वाणमंतरा जोतिसवासिता वेमाणिता जहा णेरतिता 3 // सू० 536 // छविधे भावे पन्नत्ते, तंजहाश्रोजतिते उपसमिते खतिते खतोवसमिते पारिणामिते सनिवाइए // सू० 537 // छविहे पडिकमणे पन्नते, तंजहा-उच्चारपडिकमणे पासवणपडिकममे इत्तरित आवकहिते जंकिंचिमिच्छा सोमांतिने // सू० 538 // कत्तिताणक्खत्ते छतारे पराणत्ते, असिलेसाणक्खत्ते छत्तारे पन्नत्ते // सू० 531 // जीवाणं छट्ठाणनिव्वत्तिते पोग्गले पावकम्मत्ताते चिणिंसु वा 3, तंजहा-पुढविकाइयनिवत्तिते जाव तसकायणिवत्तिते, ‘एवं चिण उवचिण बंधउदीरवेय तह निजरा चेव 4 / छप्पतेसिया णं खंधा अणंता पराणत्ता, छप्पतेसोगाढा पोग्गला अणंता पराणत्ता, छसमयट्टितीता पोग्गला अणंता, छगुणकालगा पोग्गला जाव छगुणलुवखा पोग्गला अणंता पराणत्ता // सू० 540 // छट्ठाणं छ?मज्झयणं समत्तं // ॥इति षट्स्थानकास्यं पष्ठमध्ययनम् // 6 // // अथ सप्तस्थानकाख्यं सप्तममध्ययनम् // - सत्तविहे गणावकमणे पन्नत्ते, तंजहा-सम्बधम्मा रोतेमि ( सव्व धम्मं जाणामि एवं पि एगे अवकमे) 1 एगतिता रोएमि एगइया णो रोएमि 2 सव्वधम्मा वितिगिच्छामि 3 एगतिया वितिमिच्छामि एगतिया नो वितिगिच्छामि 4 सव्वधम्मा जुहुणामि 5 एगतिया जुहुणामि