________________ प्रस्तुत ग्रन्थ के प्रकाशन में हमें श्री सरदारमल जी कांकरिया की ओर . से उनके ज्येष्ठ भ्राता श्री पारसमल जी कांकरिया की पुण्य स्मृति में 7000 रुपये का अनुदान प्राप्त हुआ; अतः उनके प्रति कृतज्ञता ज्ञापित करना हमारा पुनीत कर्तव्य है। -- यह प्रन्थ प्राकृत और जैन विद्या की सेवा में आगम संस्थान का प्रथम . पुष्प है। ग्रन्थ कितना उपयोगी और सार्थक बना है, यह निर्णय तो हम पाठकों पर छोड़ते हैं किन्तु हमें इस बात का अवश्य संतोष है कि आज अर्धमागधी आगम-साहित्य का एक रत्न प्रथम बार हिन्दी भाषा में अनूदित होकर लोकार्पित हो रहा है। गणपतराज बोहरा फतहलाल हिंगर. अध्यक्ष मंत्री