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________________ ( xxxiii ) सिद्धशिला-अन्त में सिद्धशिला पृथ्वी का वर्णन किया गया है जो सर्वार्थसिद्ध विमान के सबसे ऊंचे स्तूप के अन्त से 12 योजन ऊपर है। वह 45 लाख योजन लम्बी चौड़ी है और परिधि में यह 14230249 योजन से कुछ अधिक है। . इस पर सिद्धों का निवास है। वे सिद्ध वेदनारहित, ममतारहित, आसक्तिरहित, शरीररहित, अनाकार दर्शन और साकार ज्ञान वाले होते हैं / इनकी उत्कृष्ट अवगाहना 333 धनुष और जघन्य अवगाहना एक रत्नि आठ अंगुल कुछ अधिक है (गाथा 277 से 306) / ' अन्त में अरिहन्तों की महत्ता को प्रतिपादित करते हुए ऋषिपालित कहते हैं कि सभी भवनपति, वाणव्यंतर, ज्योतिष्क एवं वैमानिक देव अरिहन्तों की वन्दना व स्तुति करने वाले ही होते हैं। विषय-वस्तु की तुलना : 'देवेन्द्रस्तव' की यह विषय वस्तु आगम साहित्य, तिलोयपण्णत्ति और . अन्य प्रकीर्णकों में कहाँ उपलब्ध है इसका तुलनात्मक विवरण निम्नानुसार है।
SR No.004356
Book TitleDevindatthao
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhash Kothari, Suresh Sisodiya
PublisherAgam Ahimsa Samta evam Prakrit Samsthan
Publication Year1988
Total Pages230
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_devendrastava
File Size12 MB
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