SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 20
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( xix ) भी यह भ्रांति होना स्वाभाविक ही था। पार्श्वनाथ विद्याश्रम वाराणसी से प्रकाशित जैन साहित्य का बृहद् इतिहास भाग-२ में डॉ. मोहन लाल जी मेहता ने और श्री जैन प्रवचन किरणावली के लेखक आचार्य विजयपद्मसरि ने इस ग्रन्थ की विषय-वस्तु का संक्षिप्त निर्देश तो किया है, किन्तु उन्होंने इसके कर्ता के सम्बन्ध में विचार करने का कोई प्रयास ही नहीं किया है। अतः यह दायित्व अब हमारे ऊपर ही रह जाता है कि इसके कर्ता के सम्बन्ध में थोड़ा गंभीरतापूर्वक विचार करें। __ नन्दीसूत्र और मूलाचार में देविदत्थओ का उल्लेख होने से इतना तो निश्चित है कि यह ग्रन्थ ईसा की पांचवीं शताब्दी में अस्तित्व में आ गया था, अतः इसके कर्ता वीरभद्र किसी भी स्थिति में नहीं हो सकते, क्योंकि आगमवेत्ता मनि श्री पूण्यविजयजी ने "पइण्णय सुत्ताई" के प्रारम्ममें अपने संक्षिप्त वक्तव्य में वीरभद्र का समय विक्रम सं० 1008 या 1078 निश्चित् किया है। मूलग्रन्थ में वीरभद्र के नाम का स्पष्ट उल्लेख नहीं होने से तथा वीरभद्र के पर्याप्त परवर्ती काल का होने से यह निश्चित है कि इस प्रकीर्णक के कर्ता वीरभद्र नहीं है। चूंकि ग्रन्थ की मूल गाथाओं में कर्ता के रूप में ऋषिपालित का स्पष्ट उल्लेख है अतः इसके कर्ता ऋषिपालित ही हैं. अन्य कोई नहीं। / अब प्रश्न यह उपस्थित होता है कि 'देवेन्द्रस्तव' के कर्ता ऋषिपालित कौन थे ? और कब हुए ? यद्यपि नन्दीसूत्र की स्थविरावली एवं श्वेताम्बर परम्परा की कुछ पट्टावलियों में ऋषिपालित नाम के आचार्य का उल्लेख हमें नहीं मिला है, किन्तु खोज करते-करते हमें ऋषिपालित का उल्लेख कल्पसूत्र की स्थविरावलीमें प्राप्त हो गया। कल्पसूत्र की स्थविरा 1. ( क ) जैन साहित्य का बृहद् इतिहास-भाग-२ -डॉ० मोहन लाल मेहता-पृ०-३६० . ( ख ) श्री जैन प्रवचन किरणावली-विजयपद्मसूरि-पृ०-४३३ 2. पइण्णयसुत्ताइं-मुनि पुण्यविजय जी-प्रस्तावना-पृ०-१९ 3. देवेन्द्रस्तव-गाथा 309-310 4 "थेरेहितो णं अज्ज इसिपालिएहितो एत्थ णं अज्ज इसिपालिया साहा निग्गया" कल्पसूत्र-म० विनयसागर पृ० 304
SR No.004356
Book TitleDevindatthao
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhash Kothari, Suresh Sisodiya
PublisherAgam Ahimsa Samta evam Prakrit Samsthan
Publication Year1988
Total Pages230
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_devendrastava
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy