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________________ ( xvi ) पार्श्व का यह नाम रूपी मन्त्र विषधर के विष का विनाश करने वाला तथा कल्याणकारक है। जो मनुष्य इस मन्त्र को धारण करता है उसके ग्रहों के दुष्प्रभाव, रोग और ज्वर आदि से शान्त हो जाते हैं। इसके साथ ही यह भी कहा गया कि जो मात्र पार्श्व को प्रणाम करता है, वह भी दुर्गति रूपी दुःख से मुक्त हो जाता है। इस प्रकार प्रस्तूत स्तोत्र में एक ओर भौतिक कल्याण की अपेक्षा है तो दूसरी ओर आध्यात्मिक पूर्णता की कामना भी / यदि हम चतुर्विंशतिस्तव से इस उवसग्गहर-स्त्रोत्र की तुलना , ' करें तो हमें यह स्पष्ट लगता है कि यद्यपि इसमें आध्यात्मिक और भौतिक दोनों प्रकार के कल्याण की कामना है। फिर भी इतना स्पष्ट है कि चतुर्विंशतिस्तव की अपेक्षा उवसग्गहर-स्त्रोत भौतिक कल्याण की कामना में आगे बढ़ा हुआ कदम है। जहां चतुर्विंशतिस्तव में मात्र आरोग्य की कामना की गयी है, वहीं इसमें ज्वरशांति, रोगशांति और सर्प-विष से मुक्ति की कामना परिलक्षित होती है। इसे एक मन्त्र का रूप दिया गया है / जैन साहित्य में स्तोत्रों के माध्यम से मन्त्र-तन्त्र का जो प्रवेश हआ है, उस दिशा की ओर यह स्तोत्र प्रथम पद-निक्षेप कहा जा सकता है। इस स्तोत्र के कर्ता वरामिहिर के भाई द्वितीय भद्रबाहु को माना गया है। ___इसके पश्चात् प्राकृत, संस्कृत और आगे चलकर मरु-गुर्जर में अनेक स्तोत्र बने, जिनमें ऐहिक सुख-सम्प्रदा प्रदान करने की भी कामना की गयी है। यह चर्चा हमने यहाँ इसलिए प्रस्तुत की कि जैन परम्परा में स्तुतिपरक साहित्य किस क्रम से और किस रूप से विकसित हुआ है, इसे समझा जा सके / अब हम इसी सन्दर्भ में 'देवेन्द्रस्तव' का मूल्यांकन करेंगे। जैसा कि हम पूर्व में कह चुके हैं कि 'देवेन्द्रस्तव' को किसकी स्तुति माना जाय, यह निर्णय करना कठिन है / जहाँ इसकी प्रारम्भिक एवं अन्तिम गाथायें तीर्थंकर की स्तुतिरूप हैं, वहीं इसका शेषभाग इन्द्रों व देवों के विवरणों से भरा हुआ है / इस ग्रन्थ की विशेषता यह है कि इसमें किसी प्रकार के भौतिक कल्याण को कामना न तो तीर्थकरों से और न ही देवेन्द्रों से की गयी है, केवल अन्तिम गाथा में कहा गया है कि सिद्ध, सिद्धि को प्रदान करें।' इसप्रकार कल्याण कामनापरक स्तुतियों की दृष्टि से तो यह “वीरत्थुइ" और "नमुत्थुणं" के पश्चात् एवं “चतुर्विशतिस्तव" के 1. "सिद्धा सिद्धि उवविहिंतु"--देवेन्द्रस्तव-गाथा 310 .
SR No.004356
Book TitleDevindatthao
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhash Kothari, Suresh Sisodiya
PublisherAgam Ahimsa Samta evam Prakrit Samsthan
Publication Year1988
Total Pages230
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_devendrastava
File Size12 MB
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