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________________ ( xiii ) (5) तंदुलवैचारिक (6) चंद्रावेध्यक (7) देवेन्द्रस्तव (8) गणिविद्या (9) महाप्रत्याख्यान (10) वोरस्तव (11) ऋषिभाषित (12) अजीवकल्प (13) गच्छाचार (14) मरणसमाधि (15) तित्थोगालि (16) आराधना पताका (17) द्वीपसागरप्रज्ञप्ति (18) ज्योतिष्करण्डक (19) अंगविद्या (20) सिद्धप्राभृत (21) सारावली और (22) जोवविभक्ति ' इसके अतिरिक्त एक ही नाम के अनेक प्रकीर्णक भी उपलब्ध होते है। यथा-'आउर पच्चक्खान' के नाम से तीन ग्रन्थ उपलब्ध होते हैं। इनमें से नन्दी और पाक्षिक के उत्कालिक सूत्रों के वर्ग में देवेन्द्रस्तव, तंदुलवेचारिक, चन्द्रावेध्यक, गणिविद्या, मरणविभक्ति, मरणसमाधि, महाप्रत्याख्यान, ये सात नाम पाये जाते हैं और कालिकसूत्रों के वर्ग में ऋषिभाषित और द्वीपसागरप्रज्ञप्ति ये दो नाम पाये जाते हैं। इस प्रकार नन्दी एवं पाक्षिक सूत्र में नौ प्रकीर्णकों का उल्लेख मिलता है / 2 / यद्यपि प्रकीर्णकों की संख्या और नामों को लेकर मतभेद देखा जाता है, किन्तु यह सुनिश्चित है कि प्रकीर्णकों के भिन्न-भिन्न सभी वर्गीकरणों में देवेन्द्रस्तव को स्थान मिला ही है। यद्यपि आगमों की शृङ्खला में प्रकीर्णकों का स्थान द्वितीयक है, किन्तु यदि हम भाषागत प्राचीनता और आध्यात्म-प्रधान विषय-वस्तु की दृष्टि से विचार करें तो प्रकीर्णक, आगमों की अपेक्षा भी महत्त्वपूर्ण प्रतीत होते हैं। प्रकीर्णकों में ऋषिभाषित आदि ऐसे प्रकीर्णक हैं, जो उत्तराध्ययन और दशवेकालिक जैसे प्राचीन स्तर के आगमों की अपेक्षा भी प्राचीन है।' अतः 'देवेन्द्रस्तव' का स्थान प्रकीर्णकों में होने से उसका महत्त्व कम नहीं हो जाता है। फिर भी इतना अवश्य है कि यह प्रकीर्णक अध्यात्मपरक अथवा आचारपरक न होकर स्तुतिपरक है। इसकी विषयवस्तू मुख्यतः देवनिकाय तथा उसके खगोल एवं भूगोल से संबंधित है। 1. पइण्णयसुत्ताइं--मुनि पुण्यविजयजी-प्रस्तावना पृष्ठ 19 / 2. नन्दीसूत्र--मुनि मधुकर पृष्ठ 80-81 / 3. ऋषिभाषित की प्राचीनता आदि के सम्बन्ध में देखें डा० सागरमल जैन-ऋषिभाषितः एक अध्ययन (प्राकृतभारती संस्थान,जयपुर),
SR No.004356
Book TitleDevindatthao
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhash Kothari, Suresh Sisodiya
PublisherAgam Ahimsa Samta evam Prakrit Samsthan
Publication Year1988
Total Pages230
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_devendrastava
File Size12 MB
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