________________ 54 देविदत्थओ [ अणुत्तरदेवाणं विमाणसंखा सद्दाइअणुभागो य] पंचेवणुत्तराई' अणुत्तरगईहिं जाई दिट्ठाई। जत्थ अणुत्तरदेवा भोगसुहं अणुवमं पत्ता // 221 / / जत्थ अणुत्तरगंधा तहेव रूवा अणुत्तरा सदा / अच्चित्तपोग्गलाणं रसो य फासो य गंधो य // 222 // . . पप्फोडियकलिकलुसा पप्फोडियकमलरेणुसंकासा / वरकुसुममहुकरा इव २सुहमयरंदं निघोट्टति // 223 // वरपउमगंब्भगोरा सव्वेते एगगब्भवसहीओ। गब्भवसहीविमुक्का सुंदरि ! सुक्खं अणुहवंति // 224 // [देवाणं आहार-ऊसासा] तेत्तीसाए सुंदरि ! वाससहस्सेहिं होइ पुण्णेहिं / ४आहारो देवाणं अणुत्तरविमाणवासीणं / / 225 / / सोलसहि सहस्सेहिं पंचेहिं सएहिं होइ पुण्णेहिं / आहारो देवाणं मज्मिममाउं धरेताणं // 226 // दस वाससहस्साई जहन्नमाउं धरंति जे देवा। तेसि पि य आहारो चउत्थभत्तेण बोधव्वो // 220 / / संवच्छरस्स सुंदरि ! मासाणं अद्धपंचमाणं च / "उस्सासो देवाणं अणुत्तरविमाणवासीणं // 228 / / अट्ठमेहिं राइदिएहिं अट्ठहि य सुतणु ! मासेहिं / उस्सासो देवाणं मज्झिममाउं धरताणं / / 229 / 1. राणं अणु° सं० // 2. अप्फोडिय' हं० // 3. सुखमकरन्दं आस्वादयन्ति / / 4. आहारो बहि देवाऽणु सं० प्र०। आहारावहि देवाऽणु' हं० सा० // 5. पन्नेहिं सं० हं० // 6. ऊसासो सं० हं० //