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________________ देवेन्द्रस्तव - 204. यह गंधविधि संक्षेप से उपमा के द्वारा कही गयी है / (देवता) दृष्टि की अपेक्षा से स्थिर और स्पर्श की अपेक्षा से सुकुमार (होते हैं)। [प्रकीर्णक विमानों को श्रेणी, संख्या और अंतर ] 205. उर्ध्व लोक में विमानों की (संख्या) चौरासी लाख सत्तानवे हजार तेईस (कही गयी है)। 206. (इनमें) पुष्प की आकृति वाले (विमानों की संख्या) चौरासी लाख नवासी हजार एक सौ उनपचास (कही गयी हैं)। 207. श्रेणी बद्ध विमान सात हजार आठ सौ चौहत्तर होते है / शेष विमान पुष्प कणिका की (आकृति वाले हैं)। 208. विमानों की पंक्ति का अन्तर निश्चय से असंख्यात (योजन कहा गया है) और पुष्प-कणिका (की आकृतिवाले विमानों का अंतर) . संख्यात-असंख्यात (योजन) कहा गया है / [ आवलिका विमानों का आकार और क्रम ] 209. आवलिका (प्रविष्ट) विमान गोलाकार, त्रिभुजाकार और चतुर्भूजाकार (तीन प्रकार के होते हैं), पुनः पुष्पकणिका की संरचना (वाले विमान) अनेक आकार के (कहे गये हैं)। 210. वर्तुलाकार विमान के आकार कंकण को तरह, तीन कोण वाले विमान शृङ्गाटक की तरह और चतुष्कोण वाले विमान अखाड़े के आकार वाले कहे गये हैं। ___ 211. पहले वर्तुलाकार विमान, उसके अनन्तर त्रिभुजाकार विमान, उसके बाद चार कोण वाले विमान (होते हैं) (फिर) एक अन्तर के (पश्चात्) पुनः चतुष्कोण, पुनः वर्तुलाकार और पुनः त्रिभुजाकार (वाले विमान होते हैं। - * एक रत्नि लगभग एक मुण्ड हाथ या 13 फुट के बराबर होती है /
SR No.004356
Book TitleDevindatthao
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhash Kothari, Suresh Sisodiya
PublisherAgam Ahimsa Samta evam Prakrit Samsthan
Publication Year1988
Total Pages230
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_devendrastava
File Size12 MB
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