________________ देविदत्थओ कप्पवेमाणियाणं बारस इंदा] भवणभइ-वाणमंतर-जोइसवासीठिई मए कहिया। कप्पवई वि या वोच्छं 'बारस इंदे महिड्ढीए / / 162 // पढमो सोहम्मवई 1 ईसाणवई उ भन्नए बीओ 2 / तत्तो सणंकुमारो हवइ 3 चउत्थो उ माहिंदो 4 // 163 // पंचमओ पुण बंभो 5 छटो पुण लंतओऽत्थ देविंदो 6 / / सत्तमओ महसुक्को 7 अट्ठमओ भवे सहस्सारो 8 // 164 // नवमो य आणइंदो 9 दसमो पुण पाणओऽत्थ देविंदो 10 / आरण एक्कारसमो 11 बारसमो अच्चुओ इंदो 12 // 165 // एए बारस इंदा कप्पवई कप्पसामिया भणिया। आणाईसरियं वा तेण परं नत्थि देवाणं // 166 / / [गेवेञ्जऽणुत्तरेसु इंदाभावो, अनलिंगि-दसणवावन्नाणं गेवेज पज्जंतुववायपरूवणं च ] तेण परं देवगणा सयइच्छियभावणाइ उववन्ना। गेविज्जेहिं न सक्का उववाओ अन्नलिंगेणं // 167 / / जे दंसणवावन्ना लिंगग्गहणं करेंति सामण्णे / तेसि पि य उववाओ उक्कोसो जाव गेवेज्जा // 168 / / [वेमाणियइंदाणं विमाणसंखा ] इत्थ किर विमाणाणं बत्तीसं वण्णिया सयसहस्सा / सोहम्मकप्पवइणो सक्कस्स महाणुभागस्स 1 // 169 // 1. साम्प्रतकाले आनतप्राणतयुगल-आरणाच्युतयुगलस्यैकैकेन्द्रसङ्कीर्तनाद् कल्पवै. मानिकानां 'दशैव इन्द्राः' इति प्रसिद्धिरस्ति / किश्चात्र प्रकोण के कल्पवैमानिकानां द्वादश इन्द्रा वय॑न्त इति समवधेयं जिनागमज्ञैरिति /