________________ देविदत्थओ एवं वड्ढइ चंदो, परिहाणी एव होइ चंदस्स / कालो वा जोण्हा वा तेणऽणुभावेण चंदस्स // 146 // [जोइसियाणं चर-थिरविभागो] अंतो मणुस्सखेत्ते हवंति चारोवगा य उववण्णा। . .. पंचविहा जोइसिया चंदा सूरा गहगणा य // 147 / / तेण परं जे सेसा चंदाऽऽइच्च-गह-तार-नक्खत्ता। .. नत्थि गई, न वि चारो, अवट्ठिया ते मुणेयव्वा // 148 / / [जंबुद्दीवाईसु चंद-सूराईणं संखा अंतरं च] एए' जंबुद्दीवे दुगुणा, लवणे चउग्गुणा होति / कालोयणा(? लावणगा य) तिगुणिया ससि-सूरा धायईसंडे // 149 // दो चंदा इह दीवे, चत्तारि य सागरे लवणतोए / धायइसंडे दीवे बारस चंदा य सूरा य // 150 // धायइसंडप्पभिई उद्दिट्ठा तिगुणिया भवे चंदा / आइल्लचंदसहिया अणंतराणंतरे खेत्ते // 151 // रिक्ख-ग्गह-तारग्गं दीव-समुद्दे जइच्छसे नाउं / तस्स ससीहि उ गुणियं रिवख-ग्गह-तारयग्गं तु // 152 // 1. आदर्शेषु 149-150 गाथे क्रमव्यत्यासेन वर्तेते, किश्चार्थसौकर्याथे सूर्यप्रज्ञप्ति-- सूत्रानुसारेणात्र क्रमपरावृत्तिविहिताऽस्ति / एगे सा० / एवं सू० //