________________ नंदिसुत्ते थेरावलिआ अड्ढभरहप्पहाणे बहुविहसज्झायसुमुणियपहाणे / अणुओइयवरवसहे णाइलकुलवंसणंदिकरे // 38 // भूअहिययप्पगब्भे वंदे हं भूयदिण्णमायरिए / भवभयवोच्छेयकरे सीसे णागज्जुणरिसीणं // 39 // [विसेसयं] सुमुणियणिचा-ऽणिचं सुमुणियसुत्त-ऽत्थधारयं णिचं / वंदे हं लोहिच्चं सब्भावुब्भावणातचं // 40 // अत्थ-महत्थक्खाणी सुसमणवक्खाणकहणणेवाणी / पयतीए महुरवाँणी पयओ पणमामि दूसगणी // 41 // सुकुमाल-कोमलतले तेसिं पणमामि लक्खणपसत्थे / पादे पावयणीणं पांडिच्छगसएहि पणिवइए // 42 // जे अण्णे भगवंते कालियसुयआणुओगिए धीरे / ते पैणमिऊण सिरसा णाणस्स पैरुवणं वोच्छं // 43 // // थेरावलिआ सम्मत्ता॥ 1. अणुओगिय चू० / अणुओयिय° खं० / अणुओइय० इति अनुयोजितवरवृषभान् // 2. जगभूयहियपगब्मे इति आवश्यकपीठिकायां दीपिकाकृताऽऽदृतः पाठः, जगद्भत. हितप्रगल्भानित्यर्थः / / 3. धारयं वंदे। सब्भावुब्भावणयातत्थं लोहिञ्चनामाणं // इति मु. पाठः। अयं पाठश्चर्णि-वृत्तिकृतां न सम्मतः, नापि च सूत्रप्रतिषूपलभ्यते, आवश्यकनियुक्तिदीपिकाकृता श्रीमाणिक्यशेखरसूरिणा पीठिकायामयमेव पाठ आदृतोऽस्ति / / 4. 'क्खाणिं खं० सं० जे० मो० शु० चू० / / 5. सुसवण° चूपा० // 6. च्वाणिं खं० सं० जे० मो० शु० चू० // 7. °वाणिं खं० सं० जे० मो० शु० चू० / / 8. गणिं खं० सं० जे० मो० शु० चू० / / 9. एकचत्वारिंशत्तमगाथानन्तरं वृत्तिकार-चूर्णिकारान् पी० प्रतिं च विहाय सर्वासु सूत्रप्रतिषु गाथेयमधिकोपलभ्यते तव-नियम-सञ्च-संजम-विणय-ऽजव-खंति-महवरयाणं / सीलगुणगद्दियाणं अणुओगजुगप्पहाणाणं // एतद्दाथाविषये जे० प्रतौ "एषाऽपि गाथा न वृत्तौ कुतश्चित्" इति टिप्पणी वर्तते। 1.. पहि मु० / / 11. वंदिऊण सं० / वंदितूण पी० / / 12. परूयणं खं० / /